Book Title: Jain_Satyaprakash 1955 01
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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શ્રી. જેન સત્ય પ્રકાશ
[: २० रेखा २३॥ अंश दक्षिण) पर वही अंश ७५ मोलके लगभग होता है । यही नहीं, दक्षिणकी एटलांटिक सरकिल पर तो यह माप बढ़कर १०३ मील हो जाता है ।
उत्तर ध्रुवका समुद्र १०,००० से लेकर १३,००० फुट तक गहरा है, किन्तु पृथ्वी तल कहीं भी ५०० फुटसे ऊँचा नहीं है । यदि केप्टन रासके वर्णनसे इसकी तुलना की जाय तो ज्ञात होगा कि दक्षिणो ध्रुवके पहाड़ १०,००० से १६,००० फुट तक ऊँचे है और समुद्रकी गहराई ४२३ फुट है । इस प्रमाणसे सिद्ध होता है कि पृथ्वी मध्यकी अपेक्षा उसका किनारा अधिक उन्नत है, पृथ्वीकी तुलना रकाबीसे की जाती है।
इन्हीं सब बातों पर विचार करनेसे भूगर्भशास्त्रियोंने नाशपाती (पीयर)से पृथ्वीको उपमा दी है । क्योंकि उन्होंने जान लिया है कि यह उत्तरी ध्रुव पर चिपटी है और दक्षिण ध्रुवकी ओर खिंची हुई है । वे लोग स्पष्टतः क्यों नहीं कहते कि पृथ्वीका आकार रकाबीके समान है ?
पृथ्वीके चपटेपनका एक और प्रमाण सूर्यग्रहण है। उदाहरणार्थ ३० अगस्त सन् १९०५ ई०का हौ ग्रहण लीजिये । यह पश्चिमी और उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी अन्ध महासागर, ग्रीनलेण्ड, आइसलेण्ड, उत्तरी एशिया (साइबेरिया) और ब्रिटिश अमेरिकाके पूर्ण भागोंमें स्पष्ट दिखाई पडा था। यदि पृथ्वी गोल होती तो अमेरिका और एशियामें कभी एक साथ यह ग्रहण दिखाई न पड़ता । पृथ्वीका गोला लेकर इस सरल समस्या पर स्वयं ही विचार किया जाता है या जाना जा सकता है । ओर देखिये
प्रयोगोंसे सिद्ध है कि ज्यों ज्यों हम उत्तरी ध्रुवकी और बढ़ते त्यो त्यो पृथ्वीको आकर्षण शक्ति भी उत्तरोत्तर बढ़ती प्रतीत होती है। उत्तरी ध्रुवके अन्वेषकों का यह कहना है कि वे वहां कठिनतासे १०० पौंडका भार उठा सकते थे, किन्तु दक्षिणी ध्रुवके अन्वेषक इसके विपरीत यह कहते हैं कि उन्होंने वहां ३०० पौडसे ४०० पोंड तकका भार सरलतासे उठाया है । यदि पृथ्वी गोल होती तो दक्षिणी ध्रुव भी उत्तरी ध्रुवके समान ही प्रबल होता।
समुद्रादिमें लोहचुंबक पहाड़ ऐसे हैं कि होकायंत्रकी चुंबक सूइके भरोसेमें हम भ्रममें रहकर पृथ्वी गोल होनेका भ्रम और इतनी करीब ८००० मील होनेका मान लिया है। हमारी पृथ्वीको बहुत बड़ा चुंबक माना गया है और इसीको चुंबक शक्तिसे प्रभावित होकर चुंबक सूई उत्तर ध्रुवको आकृष्ट होती है।
ऐसी दशामें यदि पृथ्वी गोल हो तो भूमध्य रेखाके दक्षिणमें जाने पर चुम्बककी सूईकी दक्षिण ध्रुवकी ओर घूम जाना चाहिये, पर ऐसा नहीं होता। इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी अवश्य चिपटी है; क्योंकि चुम्बककी सूई कहीं भी रहे, मध्यमार्गका निर्देश करती रहती है। साथ ही साथ यह भी कह देना उचित होगा कि पृथ्वीके गोलेकी सबसे बड़ी परिधि भूमध्यरेखाके नीचे है और सबसे छोटो उत्तरी ध्रुव पर ।
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