Book Title: Jain_Satyaprakash 1954 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८] શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष : १० छपी है । इसी शताब्दीका एक चित्रपट पाटणके भंडारमें है जो बहुत सुन्दर है, बीकानेरके खरतर आचार्यगच्छके भंडारमें एक पंचतीर्थी पट श्रीजिनभद्रसूरिजीके लेख सहित देखा गया था। सोलहवीं शतीके तो अनेक सचित्र पट प्राप्त हैं जिनमेंसे उपकेशगच्छीय ऋषिमण्डलयन्त्र सं. १५७१ लिखितका परिचय आत्मानंद शताब्दी स्मारक ग्रंथमें डा. हीरानंदने प्रकाशित किया है । खरतरगच्छीय उपाध्याय भक्तिलाभके सूरिमंत्रकल्पपट्टका ब्लाक श्री साराभाई मणिलाल नवाबके सूरिमंत्रकल्प ग्रंथमें प्रकाशित हुआ है । नवाबने इस पटको १५ वीं शतीका लिखा है पर भक्तिलाभ उपाध्यायका समय सोलहवीं शतीका निश्चित है । हमारे संग्रहमें एवं मुनि विनयसागरोपाध्यायजीके पासका वर्द्धमान विद्यापट भो सोलहवीं शतीका हो होना संभव है । इस शताब्दीके और भी कई सचित्र पट मिलते है । अढाईद्वीप, जंबूदीप लोकनाल, चौदह राजलोक आदिके चित्रपट भी हमारे संग्रहालयमें प्राचीन संग्रहीत हैं। यह परम्परा ६०० वर्षों से जैन समाजमें निरन्तर चली आ रही है । प्राचीन पटोंमें यंत्र मंत्र सम्बन्धित चित्रोंका प्राचुर्य है; यह मध्यकालीन तान्त्रिक प्रभाव और लोकविश्वासकी देन है । उन्नीसवीं शतीमें बडे बडे चित्रपटोंका भी निर्माण हुआ जिनमें शत्रुजय तीर्थपट सविशेष उल्लेखयोग्य है। इस शतीका बीकानेरमें चित्रित एक समवसरण पट हमारे संग्रहमें भी है। सचित्र वस्नपटोंका प्रचलन न केवल भारतमें और जैन समाजमें ही था, पर बौद्ध व वैदिक परम्पराके एवं नेपाल, तिब्बतके अनेक सुन्दर और सचित्र पट पाये जाते हैं । तिब्बतमें इनका सर्वाधिक प्रचार था। पटना म्यूजियम आदि में तिब्बतीय बौद्रपट प्रचुरतासे संग्रहीत है। हमारे संग्रहका प्राचीन बौद्धपट प्राप्त सभी पटोंमें कला एवं प्रचीनताकी दृष्टिसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा उल्लेखयोग्य है। उसमें रंगोंको विविधता, बौद्ध मुद्राओंकी अनेकता, रेखाओंकी सूक्ष्मता आदि बहुत ही महत्वपूर्ण है । पटना स्थित श्रीजालानजीके संग्रहमें एक कथावस्तुका लम्बा चित्रपट दर्शनीय है। भारतीय पुरातत्त्व एवं कलाकी मूल्यवान बहुसंख्यक सामग्री पाश्चात्य देशोंमें चली गयी है । ऊपर के बोस्टनके जैन चित्रपटका उल्लेख किया ही गया है। यहांकी हस्तलिखित प्रतियां, खुदाईसे प्राप्त वस्तुएं, सिक्के, चित्र आदि इतने अधिक और सुन्दर उपादान पाश्चात्य देशोंमें विखरे पड़े कि उनकी जानकारी प्राप्त करना ही पर्याप्त समय और श्रमकी अपेक्षा रखता है, इनमेंसे बहुतसी सामग्री तो ऐसी है, जिसके दूसरे नमूने ही नहीं मिलते । विविधदृष्टियोंसे उनका इतना अधिक महत्त्व है कि वहांकी सामग्रीके उल्लेख बिना यहांकी कला-परम्पराका इतिवृत्त सर्वाङ्गीण ज्ञात कर सकना अतिकठिन है। ___ प्रस्तुत लेख में एक ऐसे ही सचित्र-जैन चित्रपटका परिचय दिया जा रहा है जो कुछ वर्ष पूर्व लंदनके म्यूजियममें जाकर वहांकी शोभा बढा रहा है। लाभग १५वर्ष For Private And Personal Use Only

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