Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४ १२ ] શ્રા કેશરીયાતીની એક અપ્રસિદ્ધ લાવણી दिलिपर तुरकांन भयो जब पातसाह लडवा आयो । हूत भूत पत्थर की मूरत जडामूलसें उखरायो || १३ ॥ Safari on fact डाई थाको यौं वाचा बोले । देव हिंदुको बडो जागतो यौं बोलत फीर फोर डोलै ॥ १४ ॥ सुणो वात काजी मुल्लां तुम एक वातसें त्रागा । गोब्राह्मणप्रतिपाल कहावे गोवधसे जो नासेगा ॥ १५ ॥ गोवध करन लग्यौ जब निजरां देख शके क्यौं प्रतिपाला । करण जुध जब भए महाबल शत्र जडोजड विकराला ॥ १६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( दूद्दो) महायुध करते लगें घाव चोरासी अंग । करि मेलो लाखो गाडली आये धूलेवे सूरंग ॥ १॥ ( लावणी ) गाम धूळे वे वंसजाल में गुपत रहे हे प्रभु धरति । गाय येके केडे वणीयनकी आई उहां चरति चरति ॥ १ ॥ श्रवे तवां पारा सिरपर सांज समे फिर हिंदूजै । रिस करे तब गोगलन पर गोपालक थीर थीर धूर्जे ॥ २ ॥ दूजे दिन गोवाल्यो आयो लह्यों भेद कह्यो बजियनपें । सेठ आय जब निजरे देख्यो चकित भयो हे तनमनमें ॥ ३ ॥ मध्य निसामें सुपनो दिनो ऋषभनाथ की मूरत है । बाहर काढे करे लापसी भितर मूरत पूरत है ॥ ४ ॥ नव दिनमें सब धाव मिलासि मत काढो तुमव दिनमें । 'कीयो शेठने हुकमप्रमाणे आये संघ बहो छ दिनमें ॥ ५ ॥ केइ अपवासी केई व्रतधारी केई अलुआ पाय चलें | के लोककुकर बाधा बां प्रभुको दरिक्षण मिलें ॥ ६ ॥ यो सब लोकां तरसे दरिसनकुं कहे लोक मूरत काढो । लाओ लाओ महाराजकी मूरत संघ सबै छिनो आडो ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only [ २६७

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