Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७२ ] www.kobatirth.org શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ तुंही मम मंत्र तुंही मम जंत्र तुंही मम सत्य तुंही मम तंत्र । तुंही गच्छनायक तुं श्रीपूज्य तुंही मम पूज्य तुंही जग पूज्य ॥ ५ ॥ (लावणी) नाथ धूलेवा किरत सुणकें देसदेसके नृप आवत हैं । नाथ कहावत हैं ॥ ६ ॥ केसर में गरगाव रहें हें केस सहेर परगने देसदेसावर फीरे दुहाई नाथकी । हिंदू मूसल वड राणां हाजर पूरे इच्छा सब मनकी ॥ ७ ॥ जलवट थलवट वाटघाटमें रण राउल भय दूर हरे । तनमन ध्यानें एक चित समरें अखय खजानो अभर भरे ॥ ८ ॥ धिधिमप २ धपमप २ तालपरवा वजरावत है गडद गडद २ धौ धौ नौपतसहि वाजत हैं । हिंदुपत पतसाह उदेपूर भिमसिंघ के राजन में Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( कलस ) ऋषभनाथ प्रथीनाथ ऋषभ दुखदालिद्र भंजण ऋषभनाथ प्रथीनाथ सबे भूप मनरंजन । ऋषभनाथ प्रथीनाथ समय बाहर धायें ऋषभनाथ प्रथीनाथ मंगला नाम गवाई ॥ ११ ॥ दीपविजे कविराज कहें खलक मूलक हाजर रहे । कलियुग साचो देव तुं सुर नर सवि किरत कहे ॥ १२ ॥ इति श्री ऋषभदेवजीरी लावणी संपूर्णम् । एह लावणी खूब बणाई सकल सिंघ के साजनमें ॥ ९ ॥ संवत १८७५ के शुभ वरसें फागुण सुदि तेरस दिवसें । मंगलके दिन दीपविजयकुं दरसण फरसण दो उलसें ॥ १० ॥ [ वर्ष १३ For Private And Personal Use Only संवत १९१३ वर्षे मिति आसोज वदि ७ दिने दक्षिणदे से गाम येवला मध्ये । साधुजी महाराज श्री १०८ श्री श्री हेमसागरजी तत् शिष्य श्री १०५ श्री रूपचंदजी तत् शिष्य नंदलाल पठनार्थम् । लिखितं दवे अमरचंद पलवाल ।

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