Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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बारह भावना संबंधी विशाल साहित्य
लेखक-श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा 'जैन सत्य प्रकाश' के क्रमांक १५३ में मुनि रमणिकविजयजी का 'वार मावनाना साहित्य विषे कईक विशेष' शीर्षक लेख प्रकाशित हुवा है। उसमें आपने मेरे लेखके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है वह विचारपूर्ण प्रतीत नहीं होता । क्यों कि मैंने अपने लेखमें यह स्पष्ट लिख दिया था कि-" बारह भावना का साहित्य बहुत विशाल है। कापडियाजीने जो सूची उपस्थित की हैं उतना ही साहित्य और भी मिल सकता है। मेरी जानकारीमें भी अनेक ऐसे ग्रन्थ आये हैं जिनमें बारह भावनाओं का विवरण है पर अभी वह मेरे सामने नहीं हैं, अतः विशेष विचारणा भविष्यमें की जायगी। यहां तो दो चार बातों पर ही प्रकाश डाला जा रहा है। " अर्थात् उस लेखका लेखन सिलहट (पाकिस्तान)में अपने व्यापारिक केन्द्रोंके निरीक्षणार्थ जाने पर हुआ था। वहां साधन न होनेसे जो कुछ आवश्यक सूचन करना था कर दिया गया व भविष्यमें विशेष विचार करनेका निर्देश भी कर दिया था तब "नाहटाजी नी नोंधमा विशेष ज्ञातव्य तरीके खास काई जणातुं नथी” लिखने का कोई अर्थ नहीं रह जाता, क्यों कि उसमें स्पष्ट रूपसे १ साहित्यकी विशालता, २ मेरे अवलोकनमें अन्य अनेक ग्रन्थोंका आना, ३ उस समय साधनों का पासमें न होना, ४ भविष्यमें विशेष प्रकाश डालनेकी सूचना कर ही दी थी। कुंदकुंद के समय व सकलचंद्रके गच्छ सम्बन्धी स्पष्टीकरणको आपने अप्रस्तुत बतलाया है पर जिस लेखके संबंधमें विशेष ज्ञातव्य लिखा गया उसमें इन दोनों बातों के संबंधमें चर्चा है अतः इनके संबंधमें लिखी गई टिप्पनी अप्रस्तुत नहीं मानी जा सकती । सकल कविको चाहे अन्य सभी तपागच्छीय मानते हों पर कापडियाजीने "कहेवाय छे (निश्चित नहीं) पण एमना गच्छ समय इत्यादि विषे कोई उल्लेख जाणवामां नथी" लिखा है अर्थात् वे इसे असंदिग्ध नहीं मानते इसी लिये मुझे लिखना आवश्यक हो गया था। अस्तु । .
अब मैं अपनी पूर्व सूचनानुसार बारह भावना संबंधी जो विशाल साहित्य मेरे अवलोकन एवं जानने में आया है उसीका परिचय दे रहा हूं।
(१) यद्यपि कापडियाजीका अध्ययन बहुत विशाल एवं स्मृति तेज है अतः बारह भावना सम्बंधी साहित्य की विस्तृत सूची दी है पर उनमें एतत् सम्बन्धी
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