Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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અંક ૧ ] નગરકેટકે તીન સ્તવન ઔર વિશેષ જ્ઞાતવ્ય [२४
कर जोडी प्रभु वीनवु ए राखि राखि भव वास । देहि बोहि चउवीस जिण सासय सुक्ख निवास
॥१३॥ संवत चउदसताणवइ (१४९७) ए जे वंदिय जिगराय । चेईहर पडिमा थुणिय भगतिहि पणमिय पाय
॥१४॥ इय सासय जे देवकुल नंदीसर पायाल अमर विमाणे बिंब जिण ते वंदउ सविकाल
॥१५॥ ॥ इति श्रीनगरकोटचैत्यपरपाटी ॥ कई वर्ष पूर्व आत्मानंद (गुजरांवालासे प्रकाशित) वर्ष ४ अं. १ में हमने ऐसी हो एक नगरकोट विनति प्रकाशित की थी।
कनकसोमरचित नगरकोट-आदीश्वरस्त्रोत्र णमवि गुरुचरणकमल निज हाथ जोडी, करिसु तवन श्रीऋषभना मान छोडी। जिम सेजि तीरथ लाभ लेखइ, तिम नगरकोटइ कह्या अति विशेष
॥१॥ जिम राउ रुपचंद आगइ विचार, गुरे लाभ अति कह्यो सेत्रुञ्जि सार । महिम सुणिय सिधखेत्रनी रूपचंदइ, लीय उ अभिग्रह अन्न नउ तित्थ वंदइ ॥२॥ कहां देस जालंधर अतिहि दूरि, कहां सेज शिखर मनि भाव पूरि । गुरे अंबिका ध्यानि करि निकटि आणी, जिनशासन उन्नति लाभ जाणी ॥३॥ कहइ अंबिका कवण काजइ हकारी, गुरे वात जे कहीय तेहिज सकारी । निशि देहरउ करिय प्रतिमा अणाइ, तहां धवलगिरि हती ते अति बगाई ॥४॥ दीय दरस सुपिणइ देवो राउ ऊठउ, तुम्ह ऋषभ आदीसर देव तूठउ । करीय पूज करि पारणउ देवि भाखड़, जय सबद कुग गुरु बिना माम राखइ ॥५॥ तिहां खाल विणु पाणीय रहइ नाही, इसी महिम सुणि यात्र अनेक जाही । हूअउ अम्ह मनि भाउ यात्रा कराणी, तिम भवियण सुणउ मीठी कहाणी
॥ढाल ॥ देस जालंधर देवथानक जगि जाणियइ रे साल ताल देवदारु । परघल रे परपल वावि नदी जल पूरियउ जी। सतलज महानदी नावा सुखि ऊतरीजी, सवा लाख गिरिराजि । मटिया रे मटिया परवत बेलि अकूरियउजी ठामि ठामि संघ देरादे करि ऊतरइजी, कोईन भंजइ डाल। तरवर रे तरवर फूल पगर महकी रह्या रे। राजपुरा जिहां पवन छत्तीस अंतरि वसइजो, नीझरणेहि निवाण । सुखमइ रे सुखमइ संघ सहु तिहकणि वहइ रे
॥८॥
॥७॥
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