Book Title: Jain_Satyaprakash 1944 01 02 03 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्य મન 4519 वर्ष ९ : अंक ४-५-६ ] विक्रम विशेषांक [ क्रमांक १००-१-२ ॥ श्रीअवन्तिपार्श्वनाथस्तुतिपञ्चकम् ॥ रचयिता पूज्य मुनिमहाराज श्रीदक्षविजयजी [प. पू. आ. म. श्री. विजयलावण्यसूरीश्वर शिष्य ] हर्षादवन्तिसुकुमारसुतेन यस्य, मूर्तिः प्रभावभवना भवनाशकारी । निर्माता निजपितुः स्मृतये सदा तं वन्देऽवनीश्वरमवन्तमवन्तिपार्श्वम् ॥ १ ॥ स्तुत्या मुदा प्रकटनात् किल यस्य मूर्तेः, श्रीसिद्धसे नवरसूरि दिवाकरेण । श्रीविक्रमार्कनृपतिः प्रतिबोधितस्तं, वन्देऽवनीश्वरमवन्तमवन्तिपार्श्वम् ॥ २ ॥ भक्तोपसर्गहरदक्ष सुयक्षपार्श्व, दुष्टाष्टकर्मवनमाशनतीक्ष्णपार्श्वम् । स्याद्वादसुन्दर सुधर्मरथैकपार्श्व, वन्देऽयमीश्वरमवन्तमबन्तिपार्श्वम् ॥ ३ ॥ अन ज्वलत्फणिमणेर्धर णेन्द्र भावं, नेतारमाशु दयया हि दयानिधानम् । श्रीमालवावनितलैकललामरूपं, वन्देऽवनीश्वरमवन्तमवन्तिपार्श्वम् ॥ ४ ॥ नखेन्द्रमौलिमणिभारप्रभालिनीरै र्यत्पादपङ्कजयुग' स्मपितं नितान्तम् । स्मृत्या समीहितकरं जगदीश्वरस्तं, वन्देऽवनीश्वरमवन्तमवन्तिपार्श्वम् ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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