Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 13
________________ अभिलेखीय एवं बौद्ध साहित्य के संकेत भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। पुनः, वड्डमाणु (आंध्रप्रदेश) में हुई खुदाई में गोदासगण का अभिलेखीय साक्ष्य" भी इस तथ्य की पुष्टि अवश्य करता है कि भद्रबाहु की शिष्य परंपरा या तो ताम्रलिप्ति से जलमार्ग द्वारा या फिर बंगाल और उड़ीसा के स्थल मार्ग से आंध्रप्रदेश होकर लंका एवं तमिलनाडु पहुँचीथी। यहाँ इसी प्रसंग में श्रवणबेलगोला स्थित चंद्रगिरिपर्वत एवं पार्श्वनाथ वसति के अभिलेखों की प्रामाणिकता की चर्चा करना भी अपेक्षित है। श्रवणबेलगोला के चन्द्रगिरि परर्वत पर शक संवत् 572 अर्थात् विक्रम संवत् 707 ईस्वी सन् 650 का शिलालेख है, उसमें भद्रबाहु और चंद्रगुप्त के उल्लेख हैं । जहाँ तक चंद्रगिरि के अभिलेख का प्रश्न है, उसमें न तो भद्रबाहु को श्रुतकेवली कहा है और न चंद्रगुप्त को मौर्यवंशीय । अतः, यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि इसमें उल्लेखित भद्रबाहु को श्रुतकेवली भद्रबाहु और चंद्रगुप्त को चंद्रगुप्त मौर्य माना जाये या भद्रबाहु को वराहमिहिर के भाई भद्रबाहु और चंद्रगुप्त को चंद्रगुप्त नामक कोई गुप्तवंशीय राजा मानाजाये। पार्श्वनाथवसति के इससे भी 50 वर्ष पूर्व शक संवत् 533 याई. सन् 600 के एक अभिलेख में स्पष्ट रूप से श्रुतकेवली भद्रबाहु और नैमित्तिक भद्रबाहु-ऐसे दो भद्रबाहु का उल्लेख है। इसमें श्रुतकेवली भद्रबाहु के पश्चात् विशाख आदि सात आचार्यों का उल्लेख करके फिर गुरु परंपरा के क्रम से भद्रबाहु स्वामी का उल्लेख है और उनके आदेश से सर्वसंघ का उज्जैन से दक्षिण पथ जाने का निर्देश है- इससे ऐसा प्रतीत होता है, ये भद्रबाहु वराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु होंगे। वराहमिहिर के पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रंथ की प्रशस्ति के आधार पर उनका काल शक संवत् 437 (ई. सन् 505) विक्रम सं. 562 सिद्ध होता है, अतः ये अभिलेखीय उल्लेख नैमित्तिक भद्रबाहु से संबंधित हो सकते हैं और इसमें उल्लेखित चंद्रगुप्त, चंद्रगुप्त मौर्य न होकर चंद्रगुप्त नामक कोई अन्य राजा होगा। अभिलेखों एवं नैमित्तिक भद्रबाहु की कालिक समानता भी इसका प्रमाण है। __ज्ञातव्य है किरइधूने अपनेभद्रबाहुचरित्र में जिस चंद्रगुप्त केभद्रबाहु से दीक्षित होने की बात कही है, उसे चंद्रगुप्त मौर्य न मानकर उसके पौत्र अशोक का पौत्र बताया है।" कुछ दिगंबर विद्वानों ने इसकी पहचान सम्प्रति से की है, किन्तु न तो, सम्प्रति का नाम

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