Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 5
________________ स्वकथ्य जैन-दर्शन गणित एवं विज्ञान की विजय का अभिनव स्मारक है । वर्तमान गणित-शास्त्र की कई पेचीदी वातो का यहाँ समाधान है, तो उसके मार्ग-दर्शन एवं उत्साह-वर्धन के लिए ढेर-सारे सूत्र एवं सम्भावनाएं भी है। जैन-गणित इतनी ऊँचाइयो को छूता हुआ नजर आता है कि उसमें प्रवेश करने के लिए भी व्यक्ति को एक अच्छा गणितज्ञ होना अनिवार्य है। जेन-दर्शन का सम्पूर्ण विस्तार जीवन-विज्ञान के धरातल पर हुआ है किन्तु यह वैज्ञानिक कसौटियों की हर चुनौती का भी स्वागत करता है। विज्ञान की ऐसी कई बातें हैं जिनके लिए जैन-दर्शन मील-का-पत्पर सिद्ध हो चुका है। क्षेत्र चाहे जैविकी हो, भौगोलिकी हो, रासायनिकी हो या भौतिकी, जेन दर्शन में गवकी मम्भावनाएँ मुग्वर हैं। जनत्व धर्म एवं दर्शन का ममीकरण है। धर्म, आचारमंहिता का प्रवर्तन है और दर्शन विचार-संहिता का । जैन-दर्शन विश्व के बौदिक एवं ममन्वयवादी दर्शनो में प्रमुख है । इसलिए इमकी दार्शनिक गहराई उम्दा होनी स्वाभाविक है। प्रस्तुत कोश जेनत्व की धार्मिक एवं दार्शनिक रूढ शब्दावली को ग्वालने और समझाने का दस्तावेज है।Page Navigation
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