Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 12
________________ अणिमा-१. सूक्ष्मतम शरीर निर्माण करने वाली शक्ति विशेष, २. अत्यन्त छोटा बनने की शक्ति । ३. प्रथम सिद्धि । अणु-पुद्गल का सूक्ष्मतम अविभाज्य अंश । अणुव्रत-बाह्य और आन्तरिक हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह का आशिक त्याग । अण्डज-त्रस जीव का एक भेद, अंडो से उत्पन्न होने वाले ___ जीव । अतिचार-व्रतपालन में शैथिल्य । अतिथि-१ जिसके आगमन की तिथि अज्ञात है। २. संयम पालन के लिए चर्या करने वाला मुनि । अतिथि-संविभाग-न्यायोपार्जित वस्तु-विशेष का सत्पात्र को प्रदान । अतिव्याप्ति-दोष-लक्ष्य और अलक्ष्य दोनो में लक्षण की विद्यमानता। अतिशय-विशिष्टता , प्रभाव । अतीन्द्रिय-प्रत्यक्ष-इन्द्रिय और मन निरपेक्ष आत्मोत्थ ज्ञान । अतीर्थ-सिद्ध-तीर्थ कर द्वारा तीर्थ प्रवर्तित होने से पूर्व या पश्चाव मुक्ति प्राप्त करने वाली आत्मा । [ ४ ]

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