Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 10
________________ अक्ष-आत्म-तत्त्व। अक्षत-अखण्डित चावल । अक्षौहिणी-सैन्य-परिणाम, जिसमें नौ हजार हाथी, नौ लाख रथ, नौ करोड़ घोड़ा और नौ अरव पदाति | थल सैनिक होते हैं। अगति-आवागमन का अभाव । अगाढ़-अस्थिर श्रद्धान । अगारी-घर-गृहस्थी का इच्छुक । अगुरुलघु-१. गुरुत्व और लघुत्व के अभाव का नाम, २. सिद्धों में प्राप्त द्रव्य एवं गुणों का साम्य । अगृहीत मिथ्यात्व-परोपदेश निरपेक्ष जन्मजात तात्त्विक अश्रद्धान। अग्निकायिक-अग्नि रूप शरीर। वे जीव जिनका शरीर ___ अग्नि स्वरूप होता है। अग्रबीज-कलम से उत्पन्न होने वाली वनस्पति । अङ्ग-१. आगमों का एक वर्ग विशेष । २. शरीर के अवयव । अङ्गार-बाहार से सम्बन्धित एक दोष ; अति तृष्णा से आहार ग्रहण करना। [ २ ]

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