Book Title: Jain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 8
________________ आत्मार्पण जिनका ज्ञान मंडित गंभीर व्यक्तित्व रत्नाकर के समान विराट एवं विशाल है। जिनका सत्कर्म गुंजित सृजनशील कृतित्व विश्वकर्मा की रचनाओं के समान नयनाभिराम एवं अभिनन्दनीय है। जिनका मर्यादा युक्त महामनस्वी जीवन लक्ष्मण रेखा की भांति अडोल, अकम्प एवं अविचल है। जिनकी शान्ति रस बरसाती प्रेरणास्पद वाणी प्रवाहमान सलिल की भांति . जगवल्लब्ध एवं जग कल्याणी है। जिनकी आनन्द दायिनी वरद छाँह कल्पतरू की भांति अधीष्ट दायक एवं मोक्षफल प्रदायक है। सेसे लोक नायक, युग श्रेष्ठ, राष्ट्रसंत परम श्रद्धेय, आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म. सा. पाठव्य श्रद्धेष्य, आवाजामों में अति के पाणि-पद्रों में सादर अर्पित

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