Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 5
________________ अपने काव्य में समाहित किया है इसकी समीक्षा की गई है। आचार्य मेरूतुङ्ग जैनमत मे आस्था रखते है। इस काव्य को उन्होंने जैन सिद्धान्तों व जीवन मूल्यो का आकार बनाकर प्रस्तुत किया है। अन्तिम अध्याय मे मेरूतुङ्गाचार्य के कविरूप की सर्वाङ्गीण समीक्षा करते हुए उनके काव्य की विशिष्टताओ का सक्षिप्त आकलन दिया गया है। जैनधर्म के सिद्धान्तो पर आधारित जैनमेघदूतम् काव्य पर प्रस्तुत प्रबन्ध वर्तमान भौतकवादी युग में जीवन के परम लक्ष्य का सङ्केत देने में सहायक सिद्ध हो सकता है। इस शोध कार्य में जिन साहित्य मर्मज्ञ विद्वानों एवं महानुभावों का सहयोग प्राप्त हुआ है, उनके प्रति मै हार्दिक आभार व्यक्त करना अपना पुनीत कर्त्तव्य समझती हूँ। ___ सर्वप्रथम मै अपनी निर्देशिका डा० राजलक्ष्मी वर्मा के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ जिनके मार्गदर्शन मे मै यह कार्य कर सकी। मेरे माता-पिता का त्याग एवं सहयोग भी इस कार्य की सफलता का एक प्रमुख घटक तत्त्व रहा है। मेरे ससुराल पक्ष से जो सहयोग मिला है वह भी बहुत महत्त्व रखता है। यह शोध-कार्य मेरे श्वसुर के अध्ययन के प्रति लगाव का द्योतक कहा जाय, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। मेरे पति देव का इस कार्य मे हर प्रकार से मेरी सहायता करना तथा समय-समय पर उत्साहवर्द्धन करते रहना भी इस कार्य की सफलता मे बहुत सहायक रहा है। मैं इन सभी शुभेच्छुओं के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुस्तकालय के अधिकारियों के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करना नहीं भूलूंगी।

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