Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ और दमयन्ती परस्पर अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे प्रेम से करने लगते है। एक समय नल मन ही मन दमयन्ती का ध्यान करते-करते अपने उद्यान में पहुँचता है तभी वहाँ पर एक हंसो का समूह आता है। उनमे से एक हंस को नल पकड़ लेते है। वह हंस नल से कहता है ततोऽन्तरिक्षगो वाचं व्याजहार नलं तदा। हन्तव्योऽस्मि न ते राजन् करिष्यामि तव प्रियम् ।। दमयन्ती सकाशे त्वां कथयिष्यामि नैषध। यथा त्वदन्यं पुरूषं न सा मंस्यति कर्हिचित् ।। एवमुक्तस्ततो हंसमुत्ससर्ज महीपतिः। ते तु हंसाः समुत्पत्य विदर्भानगमस्ततः।।' इसी प्रकार २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ३२ श्लोक मे भी हंस दमयन्ती से सम्बन्धित बातों का वर्णन नल के सम्मुख करता है। इसके अतिरिक्त राजा नल का भी देवताओं के दूत के रूप में दमयन्ती के पास जाना सर्वविदित ही है।' महाभारत के अतिरिक्त श्रीमद्भागवत में भी ऐसे कई स्थल पाये जाते है, जो कि निश्चित रूप से कई दूतकाव्यो के आधार स्वरूप है। भागवत के दशम स्कन्ध के ३०वें अध्याय में इस प्रकार की कथा है। एक बार रास क्रीडा के प्रसंग में भगवान कृष्ण के प्रेम को पाकर गोपियाँ कुछ अभिमान करने लगती है। उनके अभिमान को दूर करने की भावना से कृष्ण जी अन्तर्धान हो जाते हैं और उनके विरह में उन्मत्त की तरह अश्वत्थ, प्लक्ष, न्यग्रोध, तुलसी, मल्लिका, युथिका और आम्र इत्यादि वृक्षों से उनका पता । महाभारत वन पर्व (नलोपाख्यान) ५३/२०-२३ महाभारत वन पर्व (नलोपाख्यान) ५३/५४

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 247