Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 9
________________ दूत काव्य की परम्परा संस्कृत साहित्य मे विरही नायक अथवा नायिका का अपनी प्रेयसी अथवा प्रियतम के पास प्रणय सन्देश भेजना ही दूतकाव्य का विषय रहा है। इसलिए इसे 'दूतकाव्य' अथवा सन्देश काव्य से अभिहित किया जाता है। दूतकाव्य की परम्परा के पूर्व दूत शब्द की संक्षेप मे व्याख्या करना आवश्यक है, अतः दूत शब्द की व्याख्या विभिन्न शास्त्रो के अनुसार इस प्रकार है दूत शब्द का शाब्दिक अर्थ संस्कृत-हिन्दी कोशानुसार 'सन्देशहर' या 'सन्देशवाहक' होता है।' आंग्लभाषा मे इसे (Messenger) कहते है। अमरकोष के अनुसार दूत शब्द की व्युत्पत्ति है- दु गतौ+क्त (त) दूता' दूतनिभ्यां दीर्घश्च (उ.३/९०) सूत्र द्वारा दु के उको दीर्घ होकर दूत शब्द व्युत्पन्न हुआ है। अमरकोष में दूत का अर्थ निम्नवत् स्पष्ट किया गया । है-स्यात्सन्देशहरो दूतः। आचार्य हेमचन्द्र ने अभिधान चिन्तामणि में दूत की परिभाषा इस प्रकार से की है-'स्यात्सन्देशहरोदूतः” इस प्रकार दूत शब्द की व्युत्पत्ति के आधार पर सन्देशहारक अर्थात् किसी एक व्यक्ति के सन्देश को उसके दूसरे अभीष्ट व्यक्ति तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को दूत कहते है। संस्कृत हिन्दी कोश पृ. सं. ४६८, वामन शिवराम आप्टे अमरकोष २/६/१६ अमरकोष २/६/१६ अभिधान चिन्तामणि ३/३९८

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