Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 12
________________ जागृत होना चाहिए इसलिए दूत की साहित्य मे आवश्यकता मानी गई है। साहित्य मे नायक अथवा नायिका की ओर से दूत अथवा दूती का भेजा जाना सर्वविदित ही है। प्रायः विरह की पूर्वराग और मन अवस्थाओं में दूत अथवा दूती प्रेषण का व्यापार देखने मे आता है। विरही जब विरह मे प्रक्षिप्त हो जाता है तब उसे चेतन और अचेतन तथा पशु-पक्षी और मनुष्य का विवेक नही रहता। वह हर किसी के सामने हॅसता रोता गाता तथा प्रलाप करता रहता है। ऐसी अवस्था में विरह नायक अथवा नायिका का जिस किसी को भी दूत बनाकर अपने प्रिय के पास भेजना कुछ अस्वभाविक नहीं है। जब चेतन और अचेतन का ही विवेक न रहे, तब पशु-पक्षियों तक से अपनी विरह वेदना का निवेदन करना कुछ भी अनुचित नहीं प्रतीत होता है। इसलिए अधिकांश सन्देश काव्यों में पशु-पक्षी दूत बनाए गये है। प्रक्षिप्त अवस्था तो तब और भी अधिक प्रकट होती है जब हम पवन चन्द्र, पदांक, तुलसी इत्यादि को भी दूत कार्य में लगा हुआ देखते हैं तो आश्चर्य होता है। अन्त में मन भक्ति तथा शील जैसे सूक्ष्म और भावात्मक पदार्थ को भी दूत कार्य मे नियुक्त किया हुआ पाते है। किसी-किसी काव्य में पौराणिक पात्रों को भी दूत कार्यों मे सम्पादित करते हुए पाते हैं। इस प्रकार इन दूत काव्यों में विभिन्न पशु-पक्षियों तथा अन्य जड़ चेतन पदार्थों को भी दूत कार्यों में नियुक्त किया गया है। संस्कृत काव्य साहित्य की एक विशिष्ट परम्परा के रूप में इस दूत काव्य विधा का प्रारम्भ वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक स्पष्टतया मिलता है। उदाहरणतया ऋग्वेद को दूतकाव्यपरम्परा में दूतकाव्य का आदिस्रोत मान सकते है क्योकिं भारतीय साहित्य में ऋग्वेद ही सर्वप्राचीन ग्रन्थ है। इस वेद में सर्वप्रथम पशुओं द्वारा दूत कार्य करने का उल्लेख मिलता है। आचार्य वृहस्पति की गायों को बल नामक असुर के योद्धा पणि लोग जब अपहरण

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