Book Title: Jain Mantra Shastro-ki Parampara aur Swarup Author(s): Sohanlal G Daiwot Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 5
________________ .३७८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजो सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ...... .................................................................... अष्टम परिच्छेद-इसमें 'दर्पण निमित्त' मन्त्र तथा कर्णपिशाचिनी मन्त्र को सिद्ध करने की विधि आती है। इसके अलावा अंगुष्ठ निमित्त, दीपक निमित्त तथा सुन्दरी नाम की देवी को सिद्ध करने की विधि भी बतलाई है । धनदर्शक दीपक, गणित निमित्त, गर्भ में पुत्र है या पुत्री, स्त्री अथवा पुरुष किसकी मृत्यु होगी आदि के बारे में बताया गया है। नवम् परिच्छेद–इसमें मनुष्यों को वश में करने के लिये किन-किन औषधियों का उपयोग करके तिलक कैसे तैयार करना, स्त्री को वश में करने का चूर्ण, उसे मोहित करने का उपाय, राजा को वश में करने के लिए काजल कैसे तैयार करना, कौन सी औषधि खिलाने से मनुष्य पिशाच की तरह व्यवहार करे, अदृश्य होने की विधि, वस्तु के क्रय-विक्रय के लिये क्या-क्या करना तथा रजस्वला एवं गर्भ मुक्ति के लिये कौनसी औषधि काम में लेनी आदि विविध तन्त्र बतलाये गये हैं। दशम् परिच्छेद--इसमें गारुडाधिकार सम्बन्धी निम्नलिखित आठ बातों के वर्णन की प्रतिज्ञा की गई है और उसका निर्वाह भी किया गया है १-संग्रह : साँप द्वारा काटे गये व्यक्ति को कैसे पहचानना । २-अंगन्यास : शरीर के ऊपर मन्त्र किस प्रकार लिखना। ३-~-रक्षाविधान : साँप द्वारा काटे गये व्यक्ति का कैसे रक्षण करना। ४-स्तम्भन विधान : दंश का आवेग कैसे रोकना। ५-स्तम्भन विधान : शरीर में चढ़ते हुए जहर को कैसे रोकना। ६-विषापहार : जहर कैसे उतारना। ७--सचोद्य : कपड़ा आदि आच्छादित करने का कौतुक । ८-खटिका सर्प कौतुक विधान : खड़िया मिट्टी से आलिखित सांप के दाँत से कटवाना । इस परिच्छेद में भेखण्डा विद्या तथा नागाकर्षण मन्त्र का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त आठ प्रकार के नागों के बारे में इस प्रकार जानकारी दी गई है। नाम : अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंखपाल, कुलिक । कुल : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण । वर्ण : स्फटिक, रक्त, पीत, श्याम, श्याम, पीत, रक्त, स्फटिक । विष : अग्नि, पृथ्वी, वायु, समुद्र, समुद्र, वायु, पृथ्वी, अग्नि । जय-विजय जाति के नागदेव कुल के आशुविषवाले तथा जमीन पर न रहने से उसके विषय में इतना ही उल्लेख किया गया है । इसके अतिरिक्त इसमें नाग के फन, गति एवं दृष्टि के स्तम्भन के बारे में तथा नाग को घड़े में कैसे उतारना इसके बारे में भी जानकारी दी है। सरस्वती मन्त्र कल्प' यह ग्रन्थ भी आचार्य मल्लिषेण का बनाया हुआ है। इसमें ७५ पद्य और कुछ गद्य विधि दी गई है। काम चाण्डाली कल्प इस कृति के रचयिता भी मल्लिषेण हैं। इस कृति की एक प्रति बम्बई के सरस्वती भवन में सुरक्षित है। ज्वालिनी कल्प इसकी रचना भैरव पद्मावती कल्प आदि के प्रणेता श्री मल्लिषेण ने की है। यह ग्रन्य ज्वालामालिनी अन्य १. यह कृति साराभाई नवाब द्वारा प्रकाशित भैरव पद्मावती कल परिशिष्ट, ११ पृ. ६१-६८ पर छपी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
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