Book Title: Jain Mantra Shastro-ki Parampara aur Swarup
Author(s): Sohanlal G Daiwot
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 9
________________ ३८२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड Doorse. ............................................................... अधिष्ठायक स्तुतिः, अक्षा दि विचारः, स्तम्भनाद्यष्टकर्म विचारः, चतुर्धामन्त्रजातिमन्त्र स्मरणरीतिश्च, मुद्रावर्णनम्, पंचाशल्लब्धिवर्णनम्, विद्यामन्त्र लक्षणः । कोकशास्त्र इस कृति' को तपागच्छ कमलकलश शाखा के नर्बुदाचार्य ने संवत् १६५६ (१५६६ ईसवी) के आसोज शुक्ला दशमी को सम्पूर्ण किया। इसके दसवे अधिकार में आचार्य ने मन्त्र एवं तन्त्र की संक्षिप्त में सुन्दर सामग्री का वर्णन किया है । पद्मिनी, चित्रिणी, हस्तिनी एवं शंखिनी स्त्रियों के प्रकार के आधार पर उनको अपने वश में करने के लिये उक्त अधिकार में आचार्य ने मन्त्र के साथ तन्त्र का समावेश किया है जिससे कार्य की त्वरित सिद्धि हो सके। तन्त्र:- मोचाकंद रसेन जातिफलकं कुर्याद्वशंचित्रिणी। पक्षीमाक्षिक संयुतौ च करिणी पारापत भ्रामरैः ॥ शंखिन्यावशवत्तिनी च तगरी मूलान्वितां श्रीफलं । ताम्बूलेन सह प्रदत्तमचिराद्वश्यं भवति पद्मिनी ॥१३१८॥२ मन्त्रः- ॐ पच पच विहंगम कामदेवाय स्वाहा ॥१३२०॥ मोचाकन्द का रस और जायफल पान में देने से चित्रिणी स्त्री वश में होती है। उपर्युक्त मन्त्र से भंवरे का पंख अभिमन्त्रित कर मधु में खिलाने से चित्रिणी स्त्री वशीभूत होती है। इसी प्रकार पद्मिनी, हस्तिनी तथा शंखिनी स्त्रियों को वशीभूत करने के मन्त्र तन्त्र एवं अन्य कई प्रकार के तन्त्र दिये हुए हैं। महाचमत्कारी विशायन्त्र यह कृति श्री मेघविजयजी ने १७वीं शती ईसवी में रची है। इसमें रावण पार्श्वनाथ स्तवन पाठ, श्री अर्जुन पताका के अन्तर्गत कई प्रकार के बिसे एवं अन्य यन्त्रों की आकृतियाँ दी हैं। साराभाई नवाब ने इसे सम्पादित कर प्रकाशित करवाया है। चर्चासागर ___ यह कृति श्री चम्पालालजी ने संवत् १८१० (१७५३ ईस बी) में बसन्त पंचमी को पूर्ण की। इसमें चर्चा संख्या १५७ से १६५ तक में निम्न मन्त्रों का स्वरूप एव विधि दी हुई है। सिद्धच क्रयन्त्र, शान्तिचक्र यन्त्र, कलिकुण्ड दण्ड स्वामी यन्त्र, ऋषिमण्डल यन्त्र, चिन्तामणि च क यन्त्र, गणधर वलय यन्त्र, षोडशकारण यन्त्र, दशलाक्षणिक यन्त्र, रत्नत्रय आदि का सुन्दर विवेचन हुआ है । यह ग्रन्थ भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था, कलकत्ता से प्रकाशित है। श्री ऋषिमण्डल का मन्त्र कल्प यह कृति श्री विद्याभूषणसूरि द्वारा रचित है। साथ ही श्री ऋषिमण्डल मन्त्र, यन्त्र, स्तोत्र, पूजा श्री गुण १. साराभाई नवाब ने इसको सम्पादित कर प्रकाशित करवाया है। २. वही, पृ० ११७ ३. वही, पृ० ११७ ४. संवत्सर विक्रम अर्क राज्य, समयेते दिगहरिचन्द्र छाज । माघ मास शशि पक्षशुद्ध, पंचम गुरुवार अनंग बूद्ध ।।१२।। तिस दिन शुभ बेला पूर्ण कीन, चर्चासिधू बहुकथन पीन । नंदो वृद्धो जयवन्त होउ, यावतरविशशिछिति वाद्धि लोउ ॥१३॥ -पृ० ५३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

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