Book Title: Jain Kumar Sambhava Mahakavyam Author(s): Dharmshekharsuri, Jayshekharsuri Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 9
________________ प्रस्तावना सागरमांथी एमणे वहावेली साहित्यभागीरथी साचेज लोकहितकर, पवित्र अने सुखादु छे. __ जैन साहित्यस्रष्टाओए जनकल्याण अर्थे निर्माण करेला साहित्यने आडे सांप्रदायिक भावनाने आवया दीधी नथी. प्रत्येक दर्शनना साहित्योने पोतानी विवेचनशक्तिद्वारा एमणे विवेच्यां छे. 'न वदेद्यावनी भाषाम्' नी मान्यता वाळा भारतना ए साहित्यकारोए फारसीभाषामां पण पोतानी ज्ञानगंगा वहावी छे. अने मुस्लीम साहित्यकार अब्दुल रहमानना 'संदेशरासक' ने टीका द्वारा सुसंस्कृत कयों छे. आ सिवाय भारतीय दर्शनकारोना ग्रन्थरत्नो परनी एमनी कृतिओने आलेखीये तो एक महा निबंध थई जाय. कन्नडभाषानुं व्याकरण पण जैन विद्वानोनीज प्रसादी छे. • आम विश्वतोमुखी प्रतिभावान जैन विद्वानोए विकसावेला अनेक क्षेत्रोमांनुं आ काव्य पण एक महान् उदाहरण छे. महाकवि कालिदासना कुमारसम्भवतुं अनुकरण आ काव्यमा छे. जेम कालिदासना कुमारसम्भवमा कार्तिकेयना जन्मनुं वर्णन छे तेम आ काव्यमा भगवान् श्री ऋषभदेव स्वामिना पुत्र श्री भरतजीना जन्मनुं वर्णन कविश्रीए कर्यु छे. प्रासंगिक वर्णन तरीके युगादिदेव श्री ऋषभ प्रभुनो जन्म, बाल्यावस्था सुनन्दा-सुमंगला साथे पाणिग्रहण चतुर्दशस्वप्न विगेरे वर्णनो कर्यां छे. तदुपरांत ऋतुओर्नु अने प्रातःकाल आदिनुं पण मनोरम वर्णन कविश्रीए यथावसर कयु छे आ काव्य एक महाकाव्य छे अने महाकाव्यमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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