Book Title: Jain Kumar Sambhava Mahakavyam
Author(s): Dharmshekharsuri, Jayshekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ प्रस्तावना कवीश्वरे पोतानो श्री महेन्द्रप्रभसूरिना मध्यमशिष्य तरीके निर्देश करी पोतानो दीक्षा समय श्री मुनिशेखरसूरि पछी अने श्री मेरुतुंगसूरिजी पहेलां सूचित कर्यो छे. अंचलगच्छनी पट्टावलिमां मेरुतुंगसूरिनो दीक्षासमय वि. सं. १४१८ मां बताव्यो छे अने जयशेखरसूरिजी ते पूर्वे दीक्षित थयेला होवाथी तेमनो जन्म विक्रमनी चौदमी शताब्दिना अन्तमां अगर पंदरमी शताब्दिना प्रारंभमां होवानुं अनुमान थई शके छे. तेमनो विशेष विहार गुजरात अने तेनी आसपास थयो होय तेम तेमना ग्रन्थरचनास्थलो उपरथी समजी शकाय छे. वि. सं. १४६२ सुधीनी तेमनी कृतिओ जोवा मळे छे तेथी ते पछीना नजदीकना समयमां तेमनुं अवसान थयु हशे तेम अनुमानी शकाय छे. ___ कविश्रीनो संस्कृत प्राकृत भाषाओ उपरांत गुजराती भाषा उपर पण घणो सारो काबु हतो, ए तेमना त्रिभुवनदीपकप्रबन्ध आदि ग्रन्थो अवलोकतां रहेजे जणाया विना नही रहे. तेमनी संस्कृत प्राकृत गुजराती आदि कृतिओ नीचे मुजब छे १ उपदेशचिन्तामणि' (वि. सं. १४३६) - २ प्रबोधचिन्तामणि' (वि. सं. १४६४ खंभात) ३ धम्मिल्लचरित्रकाव्य १ मुद्रित हीरालालहंसराज. २ मुद्रित जैनधर्मप्रसारकसभा, भावनगर ३ मुदित ही ह.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 418