Book Title: Jain Krushna Sahitya Author(s): Mahavir Kotiya Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 3
________________ Amawwwwwwwwwwwwwwww ७१६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय [३] ज्ञातृधर्मकथा-इस अंगग्रंथ के पहले स्कन्ध के पांचवें तथा सोलहवें अध्ययन में श्रीकृष्ण का वर्णन हुआ है. पाँचवें अध्ययन में अर्हत् अरिष्टनेमि का रैवतक पर्वत पर आगमन, कृष्ण का दलबल सहित उनके दर्शन व उपदेशश्रवण को जाना तथा थावच्चापुत्र की प्रव्रज्या का वर्णन है. सोलहवें अध्ययन में पाण्डवों का वर्णन है. पाण्डवों की मां कुन्ती श्रीकृष्ण की बुआ थी. [४] अन्तकृद्दशा-इसमें अन्तकृत् केवलियों की कथाएँ हैं. आठ वर्ग (अध्ययनों के समूह) हैं. इस ग्रंथ में कृष्णकथा के विभिन्न अंगों का स्थान-स्थान पर वर्णन हुआ है. प्रथम वर्ग के पहले अध्ययन में श्रीकृष्ण का द्वारिका के राजा के रूप में उल्लेख हुआ है. तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन में कृष्ण के सहोदर गजसुकुमाल का प्रसिद्ध जैन आख्यान है. पांचवें वर्ग के प्रथम अध्ययन में द्वारिकाविनाश व श्रीकृष्ण की मृत्यु का वर्णन है. [५] प्रश्नव्याकरण-उपलब्ध प्रश्नव्याकरण सूत्र के दो खण्ड हैं. पहले में पांच आस्रवद्वारों का और दूसरे में पाँच संवरद्वारों का वर्णन है. प्रथम खण्ड के चौथे द्वार में श्रीकृष्ण के युद्ध करने और रुक्मिणी तथा पद्मावती को पाने का उल्लेख है. [६] निरयावलिका—इसके पांचवें उपांग दृष्णिदशा के १२ अध्ययन हैं, जिनमें प्रथम अध्ययन में द्वारवती नगरी के राजा कृष्ण वासुदेव का वर्णन है. अरिष्टनेमि विहार करते हुये रैवतक पर्वत पर पधारे. कृष्ण वासुदेव हाथी पर सवार हो दल-बल सहित उनके दर्शन व उपदेशश्रवण को गये. [७] उत्तराध्ययन–कहा जाता है, इसमें भगवान् महावीर के अन्तिम चातुर्मास के समय दिये गये उपदेशों का संग्रह है. इसमें ३६ अध्ययन हैं. २२ वें अध्ययन में जैन-कृष्ण-कथा के एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग का उल्लेख है. यह प्रसंग है श्रीकृष्ण द्वारा अरिष्टनेमि के विवाह का प्रबन्ध करना, भोज के लिये इकट्ठे किये गए पशुओं की करुण पुकार सुन अरिष्टनेमि को वैराग्य हो जाना तथा रैवतक पर्वत पर जाकर उनका तपस्या करना. इस अध्ययन से श्रीकृष्ण का जन्म सोरियपुर में होना प्रतीत होता है. श्रागमेतर प्राकृत कृष्णसाहित्य-आगमेतर साहित्य में (आगम-व्याख्या साहित्य के अतिरिक्त) कृष्ण-कथा का वर्णन करने वाला प्रथम ग्रंथ 'हरिवंसचरिय' कहा जाता है. इसके रचयिता विमलसूरि थे, जिन्होंने चरित-साहित्य के प्रसिद्ध ग्रंथ 'पउमचरिय' की रचना की है. परन्तु उक्त ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है. विमलसूरि का समय वि० की प्रथम शताब्दी निश्चित किया जाता है.' [१] वसुदेवहिण्डी-यह एक विशाल ग्रंथ है. इसके पूर्वार्द्धभाग के रचयिता संघदास गणि तथा उत्तर भाग के रचयिता धर्मदास गणि कहे गये हैं. संघदास गणि का समय ई० सन् की लगभग पांचवीं शताब्दी कहा गया है.२ ग्रंथ का मुख्य विषय श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण (हिंडन) का वर्णन करना है. ग्रंथ के दूसरे भाग पीठिया (पीठिका) में श्रीकृष्ण की अग्रमहिषियों का परिचय, रुक्मिणी से प्रद्युम्नकुमार का जन्म, उसका अपहरण, पूर्वभव, माता-पिता से पुनः मिलना, जाम्बवती से शंवुकुमार का जन्म आदि का वर्णन मिलता है. हरिवंश कुल की उत्पत्ति तथा कंस के पूर्वभवों का वर्णन भी मिलता है. कौरव-पाण्डवों का उल्लेख भी मिलता है. इस ग्रन्थ के पूर्वभाग में ११ हजार श्लोक तथा उत्तरभाग में १७ हजार श्लोक हैं.3 [२] चउप्पन महापुरिसचरियंः-यह शीलाचार्य (शीलांकसूरि) की रचना है. इस ग्रंथ में जैनधर्म के मान्य ५४ शलाका १. जैन साहित्य और इतिहास-श्री नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ ८७. २. प्राकृत सा० का इतिहास-डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, पृ० ३८१ ३. सोमदेवविरचित कथासरित्सागर की भूमिका --डा. वासुदेवशरण अग्रवाल, पृ० १३. mi (Silo HAR BO Jane ROSHENESEISESINANONESHOENENINONOSINONEPage Navigation
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