Book Title: Jain Krushna Sahitya Author(s): Mahavir Kotiya Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 6
________________ महावीर कोटिया : जैन कृष्ण-साहित्य : ७५६ कृष्ण-साहित्य की दृष्टि से इनका पाण्डवपुराण बहुत ही उल्लेखनीय ग्रन्थ है. इसी ग्रन्थ से प्रभावित होकर हिन्दी में बुलाकीदास ने पाण्डवपुराण की रचना की. यह ग्रन्थ वि० संवत् १६०८ में समाप्त हुआ.' (8) हस्तिमल्ल व उनके नाटक :-दिगम्बर सम्प्रदाय के साहित्यकारों में इनका अति महत्त्वपूर्ण स्थान है. उपलब्ध जैन संस्कृत साहित्य में ये ही ऐसे लेखक हैं, जिनके लिखे नाटक उपलब्ध हैं. ये वत्सगोत्री ब्राह्मण थे तथा समन्तभद्रकृत देवागमस्तोत्र से प्रभावित होकर जैन हो गये थे. हस्तिमल्ल इनका असली नाम नहीं था पर एक मस्त हाथी को वश में करने के उपलक्ष्य में इन्हें पाण्डय राजा ने यह नाम दिया था. कृष्णसाहित्य की दृष्टि से इनकी 'विक्रान्तकौरव' तथा 'सुभद्रा' (अर्जुन राज) ये दो कृतियां उल्लेखनीय हैं. इनका ई० सन् १२४० (वि० संवत् १३४७) में होना निश्चित किया जाता है.२ (10) अन्य रचनाएँ:-संस्कृत-जैन कृष्णसाहित्य १७ वीं शताब्दी तक का उपलब्ध है. कुछ उपलब्ध कृतियों के नाम इस प्रकार हैं : [अ] पाण्डवचरित देवप्रभसूरि रचना संवत् १२५७ [आ] पाण्डवपुराण भट्टारक श्रीभूषण १६५७ [इ] हरिवंशपुराण १६७५ [ई] प्रद्युम्नचरित सोमकीर्ति १५३० प्रद्युम्नचरित रविसागर १६४५ रतनचन्द १६७१ मल्लिभूषण १७ वीं शताब्दी [ए] नेमिनिर्वाण काव्य महाकवि वाग्भट रचना संवत् ११७६ के लगभग [ओ] नेमिनाथपुराण ब्रह्म नेमिदत्त [औ] नेमिनाथचरित्र गुणविजय [गद्य ग्रन्थ] " १६६८ [अ] हरिवंशपुराण भट्टा० यशकीर्ति १६७१ अपभ्रंश का जैन-कृष्ण-साहित्य :-अपभ्रंश-साहित्य की रचना में जैनों का सर्वाधिक योग रहा है. उपलब्ध अपभ्रशसाहित्य का करीब ८० प्रतिशत भाग जैनाचार्यों द्वारा लिखा गया है. यद्यपि अपभ्रश का उल्लेख ई० पू० दूसरी शताब्दी में [पातञ्जल महाभाष्य में मिलता है, परन्तु इसका साहित्य आठवीं शताब्दी से ही उपलब्ध होता है. उपलब्ध साहित्य के प्रथम कवि स्वयंभू हैं और कृष्ण साहित्य की दृष्टि से भी वही प्रथम कवि हैं. (१) महाकवि स्वयंभू और उनका रिटणेमिचरिउ :-स्वयंभू वि० की आठवीं शताब्दी के कवि हैं. ये एक सिद्धहस्त कवि थे. इनकी कविता अत्यन्त प्रौढ़, पुष्ट व प्रांजल है. कृष्ण-साहित्य की दृष्टि से रिटुणेमिचरिउ एक उल्लेखनीय कृति है. यह महाकाव्य है. इसमें ११२ संधियां तथा १६३७ कडवक हैं. यह चार काण्डों में विभाजित है—यादव, कुरु, युद्ध और उत्तर. कृष्णजन्म, बाल-लीला, कृष्ण के विभिन्न विवाह, प्रद्युम्न, साम्ब आदि की कथा, नेमिजन्म आदि यादवकाण्ड में वणित हुए हैं. (२) तिसट्ठि महापुरिस गुणालंकार :-यह अपभ्रंश के सर्वश्रेष्ठ कवि पुष्पदन्त की रचना है. पुष्पदन्त के काव्य के विषय में प्रेमी जी का यह कथन उद्धृत करना ही पर्याप्त होगा-उनकी रचनाओं में जो ओज, जो प्रवाह, जो रस और २. देखिये-वाचस्पति गैरोला-संस्कृत सा० का इतिहास पृ० ३६१-६२ तथा प्रेमी-जैन सा० और इतिहास पृ० ३८३-८४. २. विशेष विवरण के लिये देखिये-जैन सा० और इतिहास पृ० ३६४-३७०. ३. अपभ्रंश साहित्य-डा० हरिवंश कोछड पृ० १. ४. विशेष विवरण के लिये देखिये-वही पृ०६७-७२ तथा नाथूराम प्रेमी-जैन सा० और इतिहास-पृ० ११८, १६६. POIN INE ACINEARN Jain ल Sinelibrary.orgPage Navigation
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