Book Title: Jain Krushna Sahitya Author(s): Mahavir Kotiya Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 5
________________ ७५८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय पूर्ण हुआ.' इसके रचयिता पुन्नाटसंघीय आचार्य जिनसेन थे.२ (२) महापुराण:-यह भी जैन-कृष्ण-साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है. इसके दो भाग हैं—प्रथम आदिपुराण, द्वितीय उत्तर पुराण. यह सम्पूर्ण ग्रन्थ ७६ पर्यों में समाप्त हुआ है. इसकी श्लोकसंख्या २० हजार प्रमाण है. इसके प्रथम ४२ पर्व (सर्ग) व ४३ वें पर्व के ३ पद्य आचार्य जिनसेन के लिखे हुए हैं. ये जिनसेन हरिवंशपुराण के कर्ता से भिन्न हैं. ये पंचस्तूपान्वय सम्प्रदाय के थे. शेष ग्रन्थ आचार्य के प्रकाण्ड पण्डित व सिद्धहस्त कवि शिष्य गुणभद्र ने पूरा किया. उत्तरपुराण के ७१, ७२, व ७३ ३ पर्व में कृष्ण-कथा का वर्णन हुआ है. उत्तरपुराण की समाप्ति शक संवत् ७७५ (वि० संवत् ६१०) के लगभग बताई जाती हैं.४ (३) द्विसन्धान या राघव-पाण्डवीय महाकाव्य :-कवि धनंजय द्वारा लिखित यह एक अद्भुत महाकाव्य है. इसके प्रत्येक पद्य से दो अर्थ प्रकट होते हैं, जिनसे एक अर्थ में राम-कथा तथा द्वितीय में कृष्ण-कथा का सृजन होता है. इसके १८ सर्ग हैं. श्रीनाथूरामजी प्रेमी इस कवि का समय वि० की आठवीं शताब्दी के अन्तिम चरण से नवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक मानते हैं.५ (४) प्रद्य म्नचरित :-लाट-वर्गट संघ के आचार्य महासेन इस ग्रन्थ के रचयिता हैं. इसकी रचना का समय वि० सं० १०३१ से १०६६ के मध्य बताया जाता है. यह एक खण्डकाव्य है. इसके नायक श्रीकृष्ण के प्रबल पराक्रमी पुत्र प्रद्युम्नकुमार हैं, जिन्हें जैनपरम्परा में २१वाँ कामदेव माना गया है. इसकी कथा का आधार जिनसेनकृत हरिवंश पुराण है. यह प्रकाशित रचना है." (२) त्रिशष्ठिशलाका-पुरुष चरित्र :-प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता 'कलिकालसर्वज्ञ' विरुद से विभूषित आचार्य हेमचन्द्र हैं. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने आचार्य हेमचन्द्र के लिए 'मध्यकालीन साहित्यसंस्कृति के चमकते हुये हीरे' का विशेषण प्रयुक्त किया है.८ इनका समय वि० संवत् ११४५-१२२६ निश्चित है. इनकी प्रस्तुत कृति में जैन-परम्परा में मान्य ६३ शलाका-पुरुषों का चरित-वर्णन हुआ है. (६) महापुराण :-इसके रचयिता मल्लिषेण सूरि हैं. ये विविध विषयों के पंडित तथा उच्चश्रेणी के कवि थे. महापुराण में कुल दो हजार श्लोक हैं और इन्हीं में त्रेषठ-शलाका पुरुषों की कथा संक्षेप में वणित हुई है. यह वि० संवत् ११०४ की रचना है: (७) भट्टारक सकलकीर्ति व उसके ग्रन्थ :-१५ वीं शताब्दी में भट्टारक सकलकीति संस्कृत के अच्छे विद्वान् और कवि हुए. जयपुर के विभिन्न अन्थभण्डारों में इनके लिखे कई ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध हैं. कृष्णसाहित्य की दृष्टि से इनके दो ग्रन्थ 'उत्तरपुराण' व 'प्रद्युम्नचरित' उल्लेखनीय हैं. ये मूलसंघान्वयी थे. (८) भट्टारक शुभचन्द्रकृत पाण्डवपुराण :-मूलसंघ के ही भट्टारक शुभचन्द्र अद्भुत विचारक, विख्यात विद्वान् तथा प्रबल ताकिक थे. इनके पाण्डवपुराण ग्रन्थ की प्रशस्ति में इनके द्वारा रचित २५ ग्रन्थों का उल्लेख हुआ है. १. शाकेष्वब्दशतेषु सप्तसु दिशं पञ्चोत्तरेषूतरां. ___ यातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्ण नृपजे श्री वल्लभं दक्षिणाम् ।। २. विशेष विवरण के लिये देखिये नाथूराम प्रेमी : जैन साहित्य और इतिहास पृ० ११४. ३. देखिये महापुराण (भारतीय ज्ञान पीठ, काशी से प्रकाशित) का प्रास्ताविक, डा. हीरालाल व ए० एन० उपाध्ये तथा जैन साहित्य और इतिहास-प्रेमी पृ० १२७. ४. जैन सा० और इतिहास-प्रेमी पृ० १४०. ५. वही पृ० १११ (द्वितीय संस्करण). ६. वही पृ० ४१२. ७. ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई से प्रकाशित. ८. प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ पृ० २१६. Dherai R MAHATTIMINATICIAL ALLinkICL WHAYALAMRITIERRAHA HAIN URLD Jain Eve RCLirary.orgPage Navigation
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