Book Title: Jain Krushna Sahitya Author(s): Mahavir Kotiya Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 1
________________ श्रीमहावीर कोटिया जैन कृष्ण-साहित्य श्रीकृष्ण भारत राष्ट्र की अन्यतम विभूति हैं. उनका चरित-वर्णन व्यापक रूप से लोकरुचि का विषय रहा है. राष्ट्र की सभी धार्मिक विचारधाराओं व उनसे प्रभावित साहित्य में उनका (अपनी-अपनी मान्यतानुसार) वर्णन उपलब्ध है. वैष्णव-साहित्य में उनका स्वयं भगवान् का रूप (कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्-भा० पुराण १।३।२२) प्रमुख है; पर इसके आवरण में महाभारत आदि प्राचीन ग्रन्थों में उनके वीरश्रेष्ठ स्वरूप की ही पूजा हुई है. जैनों के निकट वे शलाकापुरुष वासुदेव हैं; जो कि महान् वीर व श्रेष्ठ अर्ध चक्रवर्ती शासक होता है. बौद्ध जातक-कथाओं में भी उनका एक वीर, शक्तिशाली व विजेता राजपुरुष के रूप में वर्णन हुआ है. स्पष्ट है कि उक्त धार्मिक विचारधाराओं में चाहे श्रीकृष्ण सम्बन्धी मान्यता की दृष्टि से बाह्य विभिन्नता रही हो, पर मूलतः सभी में उनके वीरश्रेष्ठ स्वरूप का यशो-गान प्रमुख है. बताया जा चुका है कि जैन परम्परा में श्रीकृष्ण की पुरुषशलाका वासुदेव के रूप में मान्यता है. शलाका पुरुष से तात्पर्य है श्रेष्ठ (महापुरुष) ! शलाका पुरुष श्रेषठ कहे गये हैं; तीर्थंकर २४, चक्रवर्ती १२, बलदेव ६, वासुदेव ६ तथा प्रतिवासुदेव ६. जैन पुराण ग्रन्थों व चरित-काव्यों में इन महापुरुषों का ही जीवन-चरित्र वणित हुआ है. श्रीकृष्ण नवमें (या अन्तिम) वासुदेव थे.२ वासुदेव श्रीकृष्ण एक शक्तिशाली वीर व अर्ध चक्रवर्ती शासक थे. वैताढ्य गिरि (विन्ध्याचल) से लेकर सागर पर्यन्त सम्पूर्ण दक्षिण भारत के वे एक मात्र अधिपति बताये गये हैं. उत्तर भारत की राजनीति में भी उनका विशिष्ट स्थान था. अपने शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी जरासन्ध व उसके सहायक कौरवों के पराभव के बाद हस्तिनापुर के राज्यसिंहासन पर पाण्डवों को प्रतिष्ठित कर उन्होंने उत्तर भारत में भी अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित किया. उत्तर-भारत की अन्य बहुत सी राज-नगरियों के अत्याचारी शासकों का दमन कर, उन्होंने उनके उत्तराधिकारियों को उनके स्थान पर प्रतिष्ठित कर अपने प्रभाव व लोकप्रियता में वृद्धि की. इस तरह जन-साहित्य के अध्ययन से हमें पता चलता है कि श्रीकृष्ण भारत के ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने देश में बिखरी हुई राजनीतिक शक्तियों को एकत्रित किया और उसमें सफलता भी प्राप्त की. जैन-कृष्ण-साहित्य के अध्ययन से भारतीय इतिहास के कई लुप्त तथ्य भी हमारे सामने उद्घाटित होते हैं. इनमें से एक १. देखिये 'घतजातक' २. नवमो वासुदेवोऽयमिति देवा जगुस्तदा–हरिवंशपुराण ५५-६०. 1. बारबईए नयरोए अद्धभरहस्स य समत्तस्स य आहेवच्चं जाव विहरइ-अन्तगडदशासूत्र १.५ * * * * * * * * * * * * * * * . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . Jainbrothinnitun... . . " . . . . . . । . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . DIPIVISIlluuN . . . . . . . . . . . iidulary.org..Page Navigation
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