Book Title: Jain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi Author(s): Mulchandra Jain Publisher: Jain Sahitya Sammelan Damoha View full book textPage 9
________________ ( ५ ) जैन कवियों ने शृंगार और विलास रस से पुष्ट किए जाने वाले साहित्यक युग में भी उससे अपने को सर्वधा विमुख रक्खा है यह उनकी पूर्व जितेन्द्रियता और सच्चरित्रता का परिचायक है ये केवल शृंगार काव्य से उदासीन ही नहीं थे किन्तु उसके कट्टर विरोधी रहे हैं । कविवर बनारसीदास, भैया भगवतीदास और भूधरदासजी ने अपने काव्यों में शृंगाररस और शृंगारी कवियों की काफी निंदा की है। जैन कवियों ने मानव कर्तव्य और आत्म निर्णय में ही अपनी काव्य कला को प्रदर्शित किया है। उनका लक्ष्य मानवों की चरम उन्नति की ओर ही रहा है। वे पवित्र लोकोद्धार के उद्देश्य को लेकर ही साहित्य संसार में अवतीर्ण हुए हैं। और उन्होंने उस दिशा में पूर्ण सफलता प्राप्त की है। आत्म परिचय और मानव कर्तव्य के चित्रों को उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ चित्रित किया है। भक्ति वैराग्य, उपदेश, तत्व निरूपण विपयक जैन कवियों की कविताएं एक से एक बढ़कर हैं । वैराग्य और संसार के नित्यता पर जैसी उत्तम रचनाएं जैन कवियों की हैं वैसी रचना करने में बहुत कम कवि समर्थ हुए है। हिन्दी जैन साहित्य में चार प्रकार का साहित्य प्राप्त होता है । १ तात्विक ग्रंथ, २ पद, भजन प्रार्थनाएँ, ३ पुराण चरित्र, ४ कथादि, पूजा पाठ | • जैनियों के प्रथम श्रेणी के कविवर बनारसीदास; भगवतीदास, भूधरदास, आदि कवियों ने प्रायः आध्यात्मिक तथाPage Navigation
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