Book Title: Jain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi Author(s): Mulchandra Jain Publisher: Jain Sahitya Sammelan Damoha View full book textPage 6
________________ किसी भी भारतीय कवि से पीछे नहीं रहे हैं उन्होंने काव्य द्वारा अपनी जिस पवित्र प्रतिभा का परिचय दिया है वह अत्यन्त गौरवमय है। हिन्दी का जैन साहित्य अत्यन्त विशाल और महत्वशाली है, भापा विज्ञान की दृष्टि से तो उसमें कुछ ऐसी विशेपताएँ हैं जो जैनेतर साहित्य में नहीं है। हिन्दी की उत्पत्ति जिस प्राकृत या मागधी भापा से मानी जाती है उसका सबसे अधिक परिचय जैन विद्वानों को रहा है। और यदि यह कहा जाय कि प्राकृत और मागधी शुरू से अब तक जैनों की ही संपत्ति रही है तो कुछ अत्युक्ति न होगी। प्राकृत के बाद और हिन्दी बनने के पहिले जो एक अपभ्रंश भाषा रह चुकी है उस पर भी जैनों का विशेष अधिकार रहा है। इस भाषा के अभी कई ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं और सब जैन विद्वानों के बनाए हुए हैं ऐसी दशा में स्पष्ट है कि - हिन्दी की उत्पत्ति और क्रम विकास का ज्ञान प्राप्त करने के लिए हिन्दी का जैन साहित्य अत्यन्त उपयोगी है। . हिन्दी के जैन साहित्य ने अपने समय के इतिहास पर भी बहुत. प्रकाश डाला है कविवर बनारसीदास जी का आत्म चरित अपने समय की अनेक ऐतिहासिक बातों से भरा हुआ है मुसलमानी राज्य की अँधा-धुन्धी का उसमें जीता जागता चित्र है अन्य कई ऐतिहासिक ग्रन्थ भी जैन कवियों के द्वारा लिखे गए हैं। हिन्दी जैन साहित्य अत्यन्त महत्वशाली होने पर भी भारत के विद्वानों का लक्ष्य उस पर नहीं गया इसके कई प्रधान कारण हैं।Page Navigation
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