Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08 Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ ॥ अथ ॥ || पंकित श्रीरामविजयजी विरचित श्री शांतिनाथ भगवाननो रास प्रारंभः ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथमखंमः प्रारच्यते ॥ ॥ दोहा ॥ सकल श्रेयवरदायिनी, मुनिवरवंदित जेह ॥ जिनपद लक्ष्मी नितनमुं, याणी यधिक सनेह ॥ १ ॥ उजय र्थ वाहन नृपें, सदा विराजे जेह || ते श्रीतृपन प्रनू तणां, चरण नमुं गुणगेह ॥ २ ॥ यंत रंग रिपुवर्गदल, जिरा जिंत्युं कलमांहि ॥ यजित स्वामि पमुहा नमुं, ते जिन धरि उत्साह || ३ || महिमा महोटो जेहनो, सकल सुरक दातार ॥ नवि मनोवांवित पूरवा, कामकुंन अवतार ॥ ४ ॥ कुशलव लिवन सींचवा, जे पुष्कर जलधार ॥ विश्वसेनकुल व्यवस्था सकलजंतु याधार ॥ ५ ॥ शांतिनाथ प्रभु शोलमा, गजपुरस्वामी देव ॥ बेदु पदवी धारक थया, सारे सुर नर सेव || ६ || ते श्रीशांति जिणंदनो, सरस रसिक संबंध ॥ विस्तारें करि वर्णवु, छादश नव अनुबंध ॥ 8 ॥ गुण अनंत श्रीजिन तला, केम करि वर्णव्या जाय || पण ते प्रजुनी भक्तिनुं, महोटं मुक सहाय ॥ ८ ॥ श्री सुमति सुगुरु विद्यानिधे, पदगुं एह रसाल ॥ ढालवं श्री शांतिनो, रासप्रबंध विशाल ॥ एए ॥ नव नव जव चढती कला, शुक्ल पक जिम चंद ॥ जिम कीधा तिम वर्णयुं, धरि मनमां श्रानंद ॥ १० ॥ नव पहेले श्रीपेण नृप, विलसी बहु संपत्ति ॥ ते विस्तारें दुं कहुं, सुजो नवि इक चित्त ॥ ११ ॥ • ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ स्वस्ति श्रीशाला ॥ ए देशी ॥ जंबुद्वीप अनूपम उपे, सकलदीप शृंगार ॥ मेरुमदिर मध्य विराजे, लख योजन विस्तार ॥ जेमांहे जाजा गुन द्यावासा, वासरा दो चार ॥ तेह नये अंतर अत्यंतर नन्निवास सुविचार ॥ १ ॥ यक्तमागमे ॥ नरहं हेमवयंनि, हरियासति महा विदेहति ॥ रम्म गए रuवयं एरचयं चैव चासा ॥ १ ॥ तेमांदे गुजरत जन व संयुPage Navigation
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