Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्री शांतिनायनो रास खंग पहेलो.
५
कोरां वस्त्र जो जाली रे | वि० ॥ २५ ॥ जलवाला उद्योतथी, देखी थंग जलनीनुं रे ॥ मनमांहे चिंते ए सही, नहिं याचरण कुलीनुं रे ॥ वि० ॥ २६ ॥ नग्नपणे घाव्यो इहां, धिक् एहशुं गृहवासो रे ॥ मंद रा गते ऊपरों, नामा गुण यावासो रे ॥ वि० ॥ २७ ॥ वीव्रं न पडे कंबलें, सहू कहे ए वातो रे । राम कहे बीजी ढालमां, जोई तेजो जातो रे ॥ वि० ॥ २८ ॥ || दोहा सोरठी ॥
॥ कपिल तो हवे वाप, कर्मव यथो दूबलो ॥ प्रगटधां पूरव पाप, दीप युं धन जेहनुं ॥ १ ॥ जोडीजें सो वार, राख्युं एह रहे नहिं ॥ खरचे कोइ गुन गम, जिम वाघे वमणुं वली ॥ २ ॥ यक्तं नैषधे ॥ पूर्वपुण्य विनवव्ययसृष्टाः, संपदोविपदएव विसृष्टाः ॥ पात्रपाणिकमला पेमासां, तासु शांतिक विधिर्विधिदृष्टः ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ मूकी मननुं मान, पर देशें ते संचयो || जाणी कपिल सन्मान, रत्नपुरे याव्यो वहीं ॥ ३ ॥ थावत दीठो तात, दोडी लाग्यो पाउले || जीड्यो हियडे जात, हर्ष धरी जालुवे ॥ ४ ॥ कोई मिप करि सोय, नोजन अवसरें कंतने ॥ लगो वेगे जोइ, चित्त चमक्युं नामा तनुं ॥ ५ ॥
॥ दाल त्रीजी ॥
॥ नमणी खमणी ने मन गमणी ॥ ए देशी ॥ जामा कर जोडी कहे वाच, ससराजी मुफ जांखो साच॥ गुं तुम अंगज एह के अवर, फूत कहो तो हत्या द्विजवर || १ | हत्यापातक विहितो तेह, साधुं कहे सुए बहु गुणगेह ॥ ए मुऊ दासीनो अंगजात, सांजनी समजी सघली बात | ५ ॥ धन प्राप्युं तिदां कपिल प्रवर, धरणीजट चाल्यो निज नगर | सत्य नामा गइ नृपनी पासें, कर जोडीने एणि परें जाने ॥ ३ ॥ स्वामी तुं पंचम लोकपाल, दीन नाय तो रखवाल ढुं दुःखणी ने बला चाल, कर कर स्वामी सार संभाल ॥ ४ ॥ यतः ॥ पूर्वजानामनाथानां, बालवृद्ध तपलिनाम् || न्यायपरिनूतानां सर्वेषां पार्थिवोगतिः ॥ २ ॥ उप्पय ॥ रोपे तरु उतवात, बाल तरुवरने सींचे ॥ कंटक काटे दूर, सरल तरु राखे वने ॥ ऊंच नमाडे जाउ, भूमि पडतां के रके ॥ जे व्य व फूल, तास पणवाद न चके ॥ एम अनेक माली तप्पा, गुण सपना यंगे परे ॥ राम कहे ते नृषिति, सकल लोक संपति करे || ३ || पूर्वदा ॥ जाति

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