Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ जैनकथा रत्नकोषनाग आठमो.. ॥ वि० ॥ १० ॥ नगर निरीक्षणकारणें, नमतो केपिल कदापि रे ॥ स त्यकी पावक तिहां वसे, हिजवर अमल अपापीरे ॥ वी० ॥ ११ ॥ बात्र नणावे ते बहु, कपिल गयो तस गेह रे ॥ वेद अर्थ पूजे घणा, अगम थगोचर जेह रे ॥ वि०॥ १२ ॥ उत्तर नवि दे शक्यो, बात्र सबल मति मंतो रे ॥ सत्यकी मन हरख्यो घणु, मतिगुण देखि महंतो. रे ॥ वि० ॥ १३ ॥ विद्याथी श्रादर लहे,विद्या सवल सखायी रे ॥ विद्या बंधु विदेशमां, विद्या दैवत सहायी रे ॥ वि०॥ १४ ॥ यउक्तं । हर्तुर्याति न गोचरं किम पिशं पुमाति सर्वात्मना, ह्यर्थिन्यः प्रतिदीयमानमनिशं वृद्धिं परामृजति ॥ कल्पांतेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्यारख्यमंतनं, येषां तान प्रति मानमुबत जनाः कस्तैः सह स्पईते ॥ १॥पूर्वढाल ॥योग्य जाणीने सत्यकी, कपिलने निजपद स्थापे रे॥ विद्यागुण ए जीवने, बहु सुख पदवी आपे रे ॥ विण ॥१५॥ यउक्तं ॥ गुणाब्धावादरः कार्यः, किमाटोपैःप्रयोजनम् ॥ विक्रीयते न घंटानि, गावः वीरविवर्जिताः॥शादोहो॥निर्गुण मेथप्पणा, परपुले गुण वंत॥सिर धारिवण कुसुम,अंगज मल मंत॥३॥पूर्वढालापाकगृहिणी जंबुका, तस पुत्री सत्यनामा रे। कपिलने जाणी योग्यता, परणावी अनि रामा रे ॥ वि० ॥१६॥ नाम थयुं ते नयरमां, कपिल कपिल सदु बोले रे ॥ पुण्यदशा जस पाधरी, ते नरने कुण तोलें रे ॥ वि०॥ १७ ॥ नपाध्याय हरख्यो घणुं, मुफ जाग्य ए मलियो रे ॥ पुत्री पुण्यवंती घणुं, सवल मनो रथ फलियो रे ॥ वि० ॥ १७ ॥ जगजीवाडण एहवे, उषा ऋतु तिहां धावे रे ॥ सवल घटा घन मेलवी, जगमाहे जल वरसावे रे ॥ वि० ॥ १ ॥ चिटुं दिशें चमके दामिनी, सबल सजल घन गाजे रे । जलधारा बरसे घj, ताप जगतनो नांजे रे ॥ वि० ॥ २० ॥ इण अवसरें रयणी समे, नाटक देखण काजे रे ॥ कपिल गयो ते एकलो, वेठो जश्ने समाजें रे ॥ वि० ॥ २१ ॥ नाटक जोईने वट्यो, विरमी नहिं जलधारो रे ॥ मन चिंते शहां मनुष्यनो, नहिं कोई संचारो रे । वि० ॥ २२ ॥ कोण यंगुक नीनां करे, वस्त्र सकल ऊतारी रे ॥ थई निरंशुक नीसयो, कदातर सवि । धारी रे ॥ वि० ॥ २३ ॥ भावी निज घर आंगणे, अंगुक पहेरी अंगें। रे ॥ घर पेसंतां सामुही, सत्यनामा मन रंगे रे ॥ वि० ॥ २४॥ यंगुक . पियु आगल धयां, नूतन कपिल निहाली रे ॥ सुण वनिते मंत्रे करी,

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