Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. ॥ मूलगाथा ॥ उपजाति वृत्तम् ॥ ॥तुझा नरा अनपरा हवंति, मूढा नरा कामपरा हवंति ॥ बुझा नरा खंतिपरा ह वंति,मिस्सा नरा तिन्निवि आयरंति ॥१॥ अर्थः-(खुमानरा के० ) लोनी मनुष्य जे होय ते ( अबपरा के ) इव्य उपार्जन करवानेविषे तत्पर ( हवंति के ) होय में एटले लोनी पुरुष इव्य उपार्जन करवानेविषे तत्पर होय. श्हां गाथामां जे अर्थ शब्द कह्यो ले ते अर्थ शब्दें लक्ष्मी जाणवी. अने लक्ष्मी ते देवताविशेष जे. ए ऐकरी ग्रंथकर्तायें आदिमा.मंगल सूचव्युं एम पण जणाय ले. ते कारण माटेज लोनी पुरुष इव्यनेविषे तत्पर होय. एम कर्दा, पण लोननुं फल न कह्यु, जे माटे लोजनुं फल ते नरक जाणवू. ॥ 'तुझा महबा नरयं उ वंति' इति वक्ष्यमाणवचनात् ॥ एम जो नरक एवो अर्थ आ पहेली गा थामां करियें तो उपर जे मांगलिक सुचव्युं ते रहेतुं नथी. इत्यादिक केटली चर्चा लखाय ? हवे लोननो लीधो जीव, विकट अटवीमां पेसे, महा अपार समुश्तरे, अति नीम संग्राममा अडे, कर्षण करे, कृपण स्वामीनी सेवा करे, नीचकर्म आचरे, मस्तके नार उपाडे, नूख तृषा खमे, अने ताप तथा टाहाडने पण हिसाबमां न गणे; इत्यादिक महाकष्टने सहन करीने पण इव्य उपार्जवा तत्पर होय.ते उपर चारुदत्तनो दृष्टांत कहेले. था जस्तदेवनेविषे चंपानामनी नगरीमां महाधनवान एवो नानुनामें शेठ वसे ले. तेनी सुनशनामें.नार्या , तेने पुत्र नथी. तेथी स्त्रीन र घणी आर्ति करे . अने मनमा एम विचारे ने के, ज्यररे धननो नोक्ता एवो एक पण पुत्र नथी ! ! त्यारें बापणने थाटलुं धन पण श्या काम नुं ! एम चिंतातुर रहेतां देवादिकने मानता, श्छता, एक चारणमुनि म व्या. त्यारे ते मुनिने पूब्युं के, हे महाराज ! अमारे पुत्र थशे के नहिं ! . त्यारे चारण मुनिये कयुं के,तमारे पुत्र थशे. पनी ते स्त्रीने गर्न रह्यो. थ नुक्रमें पुत्रनो जन्म थयो. ते बालकनुं चारुदत्त एवं. नाम दीधुं. ते महोटो थयो, त्यारे मित्रसाथें कीड़ा करतो एकदा समये उद्याननेविषे गयो. त्यां

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