Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ अथ ॥ श्री गौतमकुलक मूल, बालावबोध तथा कथानं सहित प्रारंभ ॥ तिहां प्रथम वार्त्तिक करनार पंमित श्रीपद्मविजयजी महाराज मंगलाचरण वे धनुष्टुव् कहे बे. ॥ अनुष्टुत्तम् ॥ नत्वा श्रीमन्महावीरं, ध्यात्वा श्रीगुरुपंकजम् ॥ मत्वा विविधशास्त्रोप, देशं सत्रसमन्वितं ॥१॥ यङ्गौतमर्षिणा प्रोक्तं, गौतमं कुलकं वरं ॥ तस्य विस्तरतः कुर्वे, वार्त्तिकं लोकनाषया ॥२॥ इहां ग्रंथनी यादिमां वस्तु निर्देशरूप मंगल जाणवुं. अथवा ग्रंथमां पद्यरूपें मंगल बांधयुं नथी, तो पण पोताना चित्तमां इष्टदेवने नमस्कार कस्यो बे, एम जावं. इहां चर्चा घणी बे, पण ग्रंथ वधे माटे जखता नथी. ca ग्रंथकर्त्ता यादिमां लोनना लक्षण शामाटे कह्या बे ? तेनो हेतु कहे बे. जे माटे चारगतिरूप संसारना हेतु, ते चार कषाय बे. तेमां पण सर्व गुणोनो विनाश करनार एवो एक लोन बे ॥ यतः ॥ कोहो पीयं पणा से, माणो विषय नासणो ॥ माया मित्ताणि नासेर, जोहो सब विष्णासणो ॥ १ ॥ इति श्रीदशवैकानिक सूत्रवचनात् ॥ तथा लोन ते डुर्जय ते. अने वली ते लोन, क्रोधादिकने रहेवाना कालमान करतां घणो काल रहे बे, एटलाज माटे श्री बाहुस्वामीयें आवश्यक निर्युक्तिमा कत्युं बे ॥ यतः ॥ नवसामंपि नवलिया, गुणमया जिणचरित्तसरिसंपि ॥ पडिवायंति कसाया, किं पुण सेसेसु रागडे ॥ १ ॥ जइ उवसंतकसान, लहर प्रांत पुणोवि पडिवार्य ॥ नतु जेवीससिावं, थोवेवि कसायसेसंमि ॥ २ ॥ छ यथोवं वणथोवं, थंगीथोवं कसायथोवं च ॥ नदु जेवीस सियवं, योवंपि ढुंति बहु होइ ॥ ३ ॥ एम ए सर्व गाथा एक लोन याश्रयिने कही बे. तथा सर्व पापनुं मूल ते लोन बे ॥ लोन 'मूलानि पापानि' इति वचनात् ॥ ते माटेज ग्रंथकर्त्तायें यादिमां लोजनुं ग्रहण करयुं बे. तयाच सूत्रम्.

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