Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. सनी दानना, लोक वसे धनवंत ॥ ल ॥ महोटा आवासें कोरणी, को रणी नहिं जसवंत ॥ ल० ॥ ज० ॥ ६ ॥ मंगा पारका दोषने. कहेवा ले वा अजाण ॥ ल ॥ अंध जे परस्त्री देखवा, इणिपरें नयर मंमाण ॥ल ॥॥॥ जनाकीर्ण ते नयरमां,बंधन कुसुमने होय ॥ला निर्दयता पणुं खड्गमां, ए जनने नहिं कोय ॥ लम् ॥ ॥ ७ ॥ प्रासाद शृंगनी ऊपरें, दंम देखीजें त्यांहि ॥ लम् ॥ नाकारो को नवि कहे,वात देवानी ज्यांहि ॥ ल ॥ जं० ॥ ५ ॥ यउक्तं ॥ यत्रनिःस्तूंशता खड्ने, बंधनं कुमुमेषु च ॥ मः प्रासादशृंगेषु, जनेषु न कदाचन ॥ २ ॥ विक्रमधन तिहां राजीयो, जे धर्मे आसक्त ॥ लम् ॥ विक्रम धन जे जेहने, नाम यथार्थ ने युक्त ॥ लम् ॥ ज० ॥ १० ॥ शत्रुने त्रास पमाडतो, यम उपम घटमान ॥ लम् ॥ मित्रनेत्रने शशी समो, पाणंद देवा ठाण ॥ ॥ जं० ॥ ११ ॥ कल्प वृद सम लोकने, वैरीने वजझम ॥ ॥ न्यायमार्ग तिम चालतो, दीपे तेज प्रचंझ ॥ ल० ॥ जं० ॥ १२॥ दश दिशथी आवे संपदा, जिम नई समुश्मा सार ॥ ॥ कीर्ति प्रगट जिम गिरिथकी, नीकरणां निरधार ॥ लम् ॥ जं० ॥ १३ ॥ नीम कांत गुण जेहना, शत्रु मित्रने नाम ॥ ल॥ अब्धि रत्न मत्स्यादिकें, जिम तिम नृप गुणधाम ॥ ल॥ जं० ॥ १४॥ यऊ तं ॥ नीमकांतनृपगुणैः, स बनूवोपजीविनाम् ॥ अष्यश्चानिगम्यश्चं, या दोरत्नै रिवार्णवः ॥ ३ ॥ धर्मचारिणी तस धारणी, धरणी परें थिर जेह ॥ज॥राणी निर्मल गुणधरा, शीलानरपी देह ॥ लम् ॥ जं० ॥१५॥ सर्व अंग रूप शोनतुं,पुण्य लावण्यनुं गेह ॥ लम् ॥ मूर्तिवंत मानुं संपदा, नूपतिने अति नेह ॥ लम् ॥ जंग॥ १६ ॥ वाणी वाणी सारिखी, तस वा हन गति खास ॥०॥ अधिकी इंशाणीथकी, नहिं उपमा जग जास ॥ लम् ॥ जं० ॥ १७ ॥ राय राणी सुख जोगवे,बीजी ढाल रसाल ल॥ पद्म कहे श्रोता घरे, होजो मंगलमाल ॥ ॥ जं० ॥ १७॥ सर्वगाथा ॥ ५३ ॥ सर्वश्लोक तथा गाथा मली ॥ ए॥ ॥दोहा॥ ॥ एक दिन राणी स्वपनमां, देखे अंब अनिराम ॥ कोयलड़ी टदुका करे, फलियो गुणनो धाम ॥ १ ॥ कोइ पुरुष ते आम्रने, वावे अंगण मुफ ॥ तस अवदात उंचे स्वरें, सांजलजे कहूँ तुफ ॥ ॥ काल केतो

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