Book Title: Jain Dharm par Lokmat Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ [८] बारे सर कर्मसे विरक्त महामुनिनको भक्तिज्ञान वैगग्य लक्षणयुक्त परमईसनके धर्मकी शिक्षा करते भये। -भागवत् स्कन्ध ५५० ५। शुरदेवजी कहते हैं कि भगवानने अनेक अवतार धारण किये, पान्तु जैमा संमारके मनुष्य कर्म करते हैं वैसा किया। किन्तु ऋषमदेवजीने जगतकी मोभमागे दिवाया, और खुद मोक्ष गये। इसीलिये मैंने ऋषभदेवको नमस्कार किया है -भागस्त भाषाटीका पृ. ३७२ । बगान अपने को सही सिद्धांतों के पवर्तक बतलाते थे जो पूर्ववती उन २३ ग पियों अथवा तीर्थ मर्गकी १८३२ द्वारा जिनका इतिहास अधिकतर सा स्थानों के रूप में मिता है प्रकाशमें लाये थे। वे किसी गये मनके संस्थापक नहीं थे। ई-वी पूर्वको पहिलो शक्षा प्रथम तीर्थ का ऋषभदेवकी नपामना करने वाले मौजूद थे. जिनके पर्याप्त प्रमाण हैं : स्वयं गजुदमें तीर्थकरके पण गौजूद हैं । भागवत्पुराण भी इ. १ पुष्ट करता है : जैनयों का धामार्ग पर लेके अगणित युगोम चला भाया है। In Indian Fhilashphy P. 229. B. Dri-Sir Radha Kirshuman, : Voice Chansler Hindi univerCity BENARES. स्वस्त नम्तायों अरिष्ट नेमिः स्वस्तिों पहपतिर्दधातु ॥ यजु० ५० २५ मंत्र १९। नेमिराजा परियाति विज्ञान प्रां पुष्टि वर्षमानो अम्मै स्वाहा ।। यदु. १. ९ मंत्र २५Page Navigation
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