Book Title: Jain Dharm par Lokmat
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ ईर्षा द्वेषके कारण धर्मपचारकवाली विपत्तिके रहते हुवे जैनशास्त्र कभी फाजित न होकर सर्वत्र विजयी होता रहा है। अहंत परमेश्वरका वर्णन वेदोंमें पाया जाता है। -स्वामी विरुणक्षवडियर MA जैनधर्म स्वथा स्वतन्त्र है, मेरा विश्वास है कि वह किसीका अनुकरण नहीं है। --डॉ० हर्मन जेकोबी, M. A. P H. D. जैनियों के २२ वें तीर्थका ने गिनाथ ऐतिहासिक महापुरुष माने गये हैं। -~-डॉ० फुडार। अच्छी तरह प्रमाणित होचुका है कि जैनधर्म बौद्ध धर्मकी शाख नहीं है। ---अबुजाक्ष सरकार - A. B. L. जैन बौद्ध एक नहीं हैं हमेशासे भिन्न नले आये हैं। ___-- जा शिवपमादजी " मिना हिन्द" यह भी निर्विवाद सिद्ध हो चुका है कि बौद्धधर्मके संस्थापक गौतम बुद्ध के पहले जैनियों के २३ तीर्थकर और होचुके हैं। --इम्पीरियल गजेटियर ऑव इण्डिया P. 54 यह बात निश्चित है कि जैनमत बौद्धमतसे पुगना है । __---मिस्टर टी० डब्ल्यू० रईस डेविड । स्याद्वाद जैनधर्मका अभेद्य किला है, उसके अन्दर वादी प्रतिवादियों के मायामय गोले प्रवेश नहीं कर सक्ते । मुझे तो इस बातमें

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