Book Title: Jain Dharm par Lokmat
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ [१२] महावीरके सिद्धान्तमें बताये गये स्याद्वादको कितने ही लोग संशयवाद कहते हैं, इसे मैं नहीं मानता । स्याद्वाद शसंयबाद नहीं है, किन्तु वह एक दृष्टि बिन्दु हमको उपलब्ध करा देता है । विश्वका किस रीनिस भवलोकन काना चाहिये यह हमें सिखाता है। यह निश्चय है कि विविध दृष्टि बिन्दुओं द्वारा निरीक्षण किये बिना कोई भी वस्तु मम्पूर्ण स्वरूपमें भा नहीं सक्ती ! स्याद्वाद (जैनधर्म) पर आक्षा करना यह अनुचित है। -प्रो० आनंदशंकर बाबूभाई ध्रुव, भूतपूर्व प्रो० वाइस चांचलर हिन्दू विश्व विद्यालय काशी । मैं अपने देशवासियों को दिग्वाऊंगा कि कैसे उत्तम नियम और ऊंचे विचार जैनधर्म और जैन आचार्यों में हैं जैन साहित्य चौद्ध साहित्यसे काफी बढ़ चढ़ का है । ज्यौं दी जौं मैं जैनधर्म तथा उनके साहित्यको समझना हूं त्यों ही सों में अधिकाधिक पसन्द करता हूं। -डॉ. नान्स हर्टल, जर्मनी । मनुष्योंकी उन्ननिके लिये जैनधर्मका चारित्र बहुत ही लाम. कारी है। यह धर्म बहुत ही ठीक, स्वतंत्र, सादा, तथा मूल्यवान है। ब्रमणों के पचलित धर्मोसे नह एकदम ही भिन्न है। साथ ही साथ बौद्ध धर्मकी तरह नास्तिक भी नहीं है। -डॉ. ए. गिर नॉट, फ्रान्स । महावीरने रिमडिम नादमें भारतमें ऐसा सन्देश फैलाया कि

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