Book Title: Jain Dharm ke  Prabhavak Acharya
Author(s): Sanghmitrashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ समर्पण इतिहास स्रप्टा आचार्यश्री तुलसी और युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ को १ प्रशस्या. पुण्यार्हाः परहितरता प्राप्तयशसः, प्रवीणाःप्राचार्या प्रतिनिधिपदे ये भगवताम् । प्रणम्याः प्रत्यहं प्रणिहितधिय प्राजपुरुषा., प्रसीदेयु. पूज्याः प्रशमरसपीता. प्रमुदिताः। २ महाभागा मान्या मथितमदना मानरहिता, विवेकज्ञा विज्ञा विशदमतयो वाचकमुखा.।। समोद स्वल्पायं लघुकृतिमय संघतिलका, महान्त. स्वीकुर्युर्गुणगणयुता विश्वमहिता ॥

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