Book Title: Jain Dharm ke  Prabhavak Acharya
Author(s): Sanghmitrashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ प्रस्तुति निग्रंन्य मानन ___ नियमप मगम, त्याग बोरामापी भूमिमा अधिष्ठिन ।। बना गनोर पुन्ज हारती कम माग और मनानक होते हैं। तीर्थकर Tी जनुमिनि म महम्पूर्ण मावि पापियाण आचाय पारते है। भचाय विराटनम बाजार मापटा रे न्यारते है। ये सीम गुणो में अनान होने। श्रीपपीतमय प्रासमा चार जन जन के गय को जानोफिन तिभौरवोधानं ही गिग-पनवार को नार मासी-महलो जीवन नीराजो को भवाब्धि के पार परमाते है। जैन गामन और भगवान महावीर ___ वर्तमान जन मामन भगवान महावीर मी अनुपम देन है। सर्वशोपलब्धि के बाद अध्यात्म प्रहरी, मुगिनदूत, तप पून तीधर महायोर ने तीर्थ की स्थापना को । अहिमा, अभय, मंत्री का ग्नेह प्रदान कर ममता का दीप जलाया । अध्यात्म के आयाम उद्घाटित किए । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र पुगप और नागे सभी के लिए धम की नमान भूमिका प्रस्तुत की। अपनी अनन्त महासम्पदा मे जनजन यो लाभान्वित कर एव ममुचित व्यवस्था कम मे जन सघ को मार्ग-दर्शन देकर भगवान महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। आचार्यों की गौरवमयी परम्परा का प्रारम्भ भगवान महावीर की विशान सघ सम्पदा को जैनाचार्यों ने सम्भाला। जैनाचार्य विराट् व्यक्तित्व एव उदात्त कृतित्व के धनी थे। वे सूक्ष्म चिन्तक एव मत्यद्रप्टा थे।धेयं, औदार्य और गाम्भीर्य उनके जीवन के विशेप गुण थे। सहस्रोमहस्री श्रुत-मम्पन्न मुनियो को लील लेने वाला विकगल काल का कोई भी क्रूर आघात एव किमी भी वात्याचक का तीव्र प्रहार उनके गनोवल की जलती मशाल को न मिटा सका, न बुझा मका और न उनकी विराट् ज्योति को मद कर मका।

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