Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 12 Author(s): Lakshmichand Premchand Shah Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth View full book textPage 5
________________ શ્રી આદીનાથ ચરિત્ર પદ્ય ३४३ ॥श्री आदिनाथ चरित्र पद्य ॥ (जैनाचार्य जयसिंहसूरिजी तरफथी मळेलु) (dis Y४ १११ था अनुसंधान ) राजसभा एक दिन, राजत महाबाराय । चतुर मत्री आये तभी, बेठे सीस नवाय ॥ स्वयंबुद्ध प्रधान, इमि मनमें बोलन लगा। स्वामी कर कल्याण, एसा होना कठिन है । हमरे देखत श्रीमहाराजा, विषय माय बिसरे निज काजा। यहि कारण अब नृपहिं जतावें, हानिलाभकर घात मुझावें ॥ स्वयंबुद्ध इमि कह उठ बोला, सभा माहिं हृदय पट खोला। नृपति सुनिय एक बात हमारी, सत्य बात मे कहउ विचारी ॥ सागरसे भवउपमा होइ, प्रागर प्रकृति मे कहता सोह। नदी नीर सागर नहीं तृप्ती, तिमि जगमें विषयन नहीं खपती॥ जिमि जिमि जीव विषयको भोगे, तिमि तृष्णा सद्वातिको चोगे। दुर्जन जीव जहरधर प्राणी, इनहिं सेव अति होवत हानी ॥ कामदेवसुख हो तत्काला, पुनि परिणाम विरस रसवाला। जिमि खुजातदाद बड़ रोगा, काम बड़त तिमि करते भोगा। कामदेव नर्ककर दूता, व्यसन सिंधु पापका भूता। कामदेव शुभ मार्ग छुड़ावे, कामदेव मदमत्त कहावे ॥ ग्रहस्थ भवन जिमि मृशक खोदे, तिमि नरदेह काम सब खोदे। अर्थ धर्म मोक्षकर नासा, नर्कपुरीका डालत पासा॥ कामजाल नारी नृपराई, इससे निजको रहो बचाई। संगतिसे नर सुखदुख पावे, संगति हि से मोक्ष सिधावे ॥ चपलूसी नर निज सुखकारी, स्वामी लाभ कर सुरत बिसारी। सोइ नर राजन तुमको फांसा, तिन संगति निज कार्यविनासा ॥ विषयवासना है दुखकारी, नर्कगति दुख देवनहारी। धर्मविहीन देह नहीं सोभा, जिमि जलहीन सरोवर सोभा ॥Page Navigation
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