Book Title: Jain Dharm Prakash 1964 Pustak 080 Ank 01
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org શ્રા જૈન ધમ પ્રકાશ (१) अन्तिम पत्र खो गया था नष्ट हो गया होगा । अन्यथा २२ स्तनों के हो रचने का कोई कारण समझ में नहीं आता । 'पद' भी उन्होंने कितने बनाये इसकी संख्य निश्चित नहीं मालूम होती : क्योंकि प्रसिद्धि तो बहुत्तरी की है पर कोई भी ति पूरी ७२ पदों वाली नहीं मिली है इस लिये बहुत्तरो नाम कब से प्रचलित हुआ ? यह अन्वेषण का विषय हो जाता है। प्राप्त प्रतियों में प्रायः ७६ से ले कर ८५ तक पद मिलते हैं। केवल २-३ प्रतियां ही इसका अपवाद है जिन में से हमारे संग्रह के एक प्राचीन गुटके से ६५ पद हैं। और सं. १७५९ की एक उक्त प्रति में ५० पद ही है। पर अब तो प्रकाशित पदों की संख्या ११२ तक पहुंच गई है। अतः मूल पद कितने व कौनसे बनाये थे ! यह भी खोज का विषय है । गत कई वर्षो में हमने आनंदघनजी के स्तनों और पदों की प्राचीन प्रतियों की प्रयत्न पूर्वक खोज की तो हमें प्रकाशित पाठ और प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में महत्त्व के पाठान्तर मिले है। पदों की भांति चोवीसी की भी प्राचीनतम प्रति हमारे संग्रह में ही है, कई प्रतियों में कुछ अप्रकाशित पद भी मिले हैं पर उनकी संख्या अधिक नहीं है। अधिकांश प्रतियां १९वीं शताब्दी की मिलती है । १८वीं शताब्दी की २-३ प्रतियों की उल्लेख जैन गूर्जर कवियो भाग ३ के पृष्ठ ११०० में श्री मोहनलाल देसाईने किया है। इनमें से चौबीसी की एक प्रति संवत् १७५२ और ज्ञानविमलसूरिके बालावबोध की एक सं. १७९१ की श्री "सीमंधर भण्डार में होने का उल्लेख किया Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ र गया है पर यह सीगंधर भण्डार कहां पर है ? यह निश्चित रूप से ज्ञान नहीं हो सका अतः जिस सज्जन को इसकी जानकारी हो मुझे सूचित करें, क्योंकि सं. १७५२ वाली प्रति को मुझे अवश्य देखना है । यद्यपि चौवीसी के तो कई विवेचन प्रकाशित हो चुके हैं पर जैन गुर्जर कवियो भाग २ के पृष्ट ३२ में यशोविजयजी की रचनाओं की सूचीवाले पाटण भण्डार के (जो १७५३ के) एक फुटकर पत्र में उल्लिखित आनंदघन चावीसी बालबोध की प्रति अभी तक कहीं भी नहीं मिली। जिसके मिलने पर बहुत सी नई बातें और महत्त्वपूर्ण विवेचन प्राप्त होता । इस लिये इस बालवबोध की खोज की जाती भी निदान्त आवश्यक है। चौबीसी और पदों के अतिरिक्त आनंदघनजी रचित पंच समिति की ढालो, स्थानकवासी मुनि देवचन्दजी संपादित 'विविध पुष्प वाटिका' एवं सुरत से प्रकाशित एक अन्य ग्रन्थ में प्रकाशित हुई हैं। कहा गया है कि इस रचना की एक जीर्ण प्रति कच्छ किसी भण्डार में मिली थी । पर अभीतक अन्य कोई प्रति किसी भी भण्डार में होने की जानकारी नहीं मिली । २-३ वर्ष पहले जिनदन्तमुरि सेवा संघ के मंत्री श्री मंदसोरवाले की प्रतापमलजी सेठिया के पास आनंदघनजों के पदों की एक प्रति र भ्रातृ पुत्र भंवरलाल को देखने को मिली। इस प्रति में ७६ पद है और यह प्रति सं. १८५७ की लिखी हुई है। पदों के बाद आनंदघनजी रचित चौवीस तीर्थंकरों का एक स्तवन है जो अभी तक अन्यत्र कहीं भी नहीं मिला है। अभी अभी मैंने कुछ हस्तलिखित ग्रन्थ ख़रीदे हैं, उनमें भी For Private And Personal Use Only

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