Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 13
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 11 प्राक-कथन वर्तमान युग में जीवन की जो त्रासदियाँ हैं, उनमें तनाव की समस्या प्रमुख है। आज विश्व का प्रत्येक मानव तनावों से ग्रस्त है। मानव दुःख रूप है, और प्रत्येक व्यक्ति दुःखों से मुक्त रहना चाहता है। फिर भी स्थिति यह है कि सभी व्यक्ति किसी न किसी रूप से आज तनावों से ग्रस्त हैं । तनाव मूलतः एक मनोदेहिक स्थिति है जो दुःख रूप है। जैन परम्परा में प्राचीन काल में यह दोहा विशेष रूप से प्रसिद्ध रहा है धन बिना निर्धन दुःखी और तृष्णावश धनवान | कोई न सुखी या संसार में सारो जग लियो छान ।। तात्पर्य यह है, कि धनी या निर्धन, सभी व्यक्ति आज तनावों से ग्रस्त है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है, कि आज कोई भी व्यक्ति तनावों में जीना नहीं चाहता है, फिर भी सभी अपनी मानसिकता के कारण तनावों से ग्रस्त बने हुए हैं। - प्रत्येक मनुष्य का ध्येय सुख और शांति की प्राप्ति है, किन्तु दुःख को उपाशान्त करने के उसके सारे प्रयत्न कही न कही उसे तनावग्रस्त ही बना रहे हैं। तथ्य यह है कि दुःख मुक्ति और सुख के लिए प्रयत्नशीलता भी. किसी न किसी रूप में मनुष्य को तनावग्रस्त ही बना रही है, क्योंकि जब तक मनुष्य में इच्छा, आकांक्षा, अपेक्षा और चाह बनी हुई है, तब तक तनावों का जन्म तो होना ही है। कामनाएँ तनावों : को जन्म देती है, और आज विश्व में प्रत्येक व्यक्ति कामनाओं से ग्रस्त बना हुआ है । वस्तुतः कामनाओं की पूर्ति की चाह के कारण वह किसी न किसी रूप में तनावग्रस्त बना ही रहता है। यद्यपि तनाओं के कारण मनोदैहिक अर्थात् भौतिक और मानसिक दोनों ही होते है, किन्तु उनमें मानसिक कारण ही प्रमुख होते हैं। यह सत्य है कि अभाव और इच्छाएँ दोनों ही मनुष्य को तनाव ग्रस्त बनाती है, फिर भी मानसिकता के बिना अभाव व्यक्ति को उतना तनाव ग्रस्त नहीं बनाता है, जितना उसकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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