Book Title: Jain Darshan me Nayvad
Author(s): Sukhnandan Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 2
________________ जैनदर्शन में नयवाद भारतीय दर्शन के क्षेत्र में 'नयवाद' जैनाचार्यों की एक मौलिक देन है। नयवाद का जैनदर्शन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनेकान्तवाद एवं स्यावाद के सिद्धान्तों का विवेचन भी इसी के साथ किया जाता विद्वान लेखक ने सम्पूर्ण जैन वाङ्मय के आलोक में तथा अन्य भारतीय दर्शन की तुलना में नयवाद का एक ऐसा समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है जो दर्शन के क्षेत्र में नये तथ्यों के उद्घाटन के साथसाथ अपनी उपयोगिता एवं महत्त्व को उद्घोषित करता है। जीवन में कई प्रकार के विचार जो एक-दूसरे के विरोधी प्रतीत होते हैं उनका समन्वय आधुनिक जीवन की एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। नयवाद का मूल उद्देश्य यही है। नयवाद इस दिशा में एक समर्थ दृष्टि देता है। नयवाद की जितनी उपयोगिता सैद्धान्तिक दृष्टि से है उतनी ही व्यावहारिक दृष्टि से भी। वास्तव में, नयवाद के विवेचन के बिना जैन सिद्धान्तों की व्याख्या ही नहीं की जा सकती। इस ग्रन्थ में कुल पाँच अध्याय हैं। इनमें लेखक ने जैन वाङ्मय में विवेचित अन्यतम उपाय 'नय' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रमाण के साथ उसके अन्तर को विस्तार से निरूपित करने का प्रयास किया है। साथ ही, नयों के समन्वयवादी, सैद्धान्तिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालते हुए उनके भेद-प्रभेदों को भी एक सीमा में प्रस्तुत करने की सार्थक चेष्टा की है। इस विषय पर हिन्दी में अब तक प्रकाशित ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कृति। ISBN: 978-81-263-1946-6 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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