Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 4
________________ स्वकीय लेखकीय) मेरे प्रकाशित आलेखों के संग्रह का प्रयास चल रहा है। पूरी योजना व्यापक है, क्योंकि मेरे प्राकृत और जैन विद्या सम्बन्धी कुल आलेख 400 के लगभग हैं और पृष्ठ संख्या लगभग पाँच हजार। अतः कई खण्डों में उनके प्रकाशन की योजना बनी है। अभी तक लगभग 9 खण्ड प्रकाशित हो चुके हैं। अब मैं अपनी वय का 85वाँ वर्ष पार कर रहा हूँ आँख और शरीर की शक्ति शिथिल हो रही है। अतः प्रो. अम्बिकादत्तजी ने मेरे दार्शनिक आलेखों के सम्पादन एवं प्रूफ संशोधन का दायित्व स्वेच्छा से अपने ऊपर लिया अतः तत् सम्बन्धी जो भी संग्रह मेरे पास था वह उन्हें दे दिया गया, उन्होंने अपने सहयोगी प्रदीपजी खरे को साथ लेकर इस विषय में जो भी श्रम किया वह अनुमोदनीय है एवं इस हेतु मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ| उनके सहयोगी प्रदीपजी खरे ने जो भी सहयोग उन्हें प्रदान किया उसके लिये वे भी आभार के पात्र हैं। मैं प्राकृत भारती संस्थान और विशेष रूप से भाई देवेन्द्र राज जी मेहता का भी आभारी हूँ जो उन्होंने इन आलेखों के प्रकाशन का दायित्व अपने ऊपर लिया। इस कार्य में संस्थान एवं प्रकाशन कार्य के सभी सहयोगीजनों के प्रति भी मेरा आभार। भवीदय : प्रो. सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर-465001 (मध्य प्रदेश)

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