Book Title: Jain Agamo me Nihit Ganitiya Adhyayan ke Vishay Author(s): Anupam Jain, Sureshchandra Agarwal Publisher: USA Federation of JAINA View full book textPage 1
________________ जैन आगमों में निहित गणितीय अध्ययन के विषय अनुपम जैन* एवं सुरेशचन्द्र अग्रवाल" जैन परम्परा में तीर्थंकरों के उपदेशों एवं उन उपदेशों की उनके प्रधान शिष्यों ( गणधरों) द्वारा की गई व्याख्या को समाहित करने वाले समस्त शास्त्र आगम की संज्ञा से अभिहित किये जाते हैं । वर्तमान में उपलब्ध समस्त आगमों की रचना ५वीं शती ई० पू० से ५ वीं शती ई० के मध्य जैन परम्परा के वरिष्ठ आचार्यों द्वारा भगवान् महावीर के उपदेशों के आधार पर की गयी है। जैनधर्म की दोनों धाराएँ ( दिगम्बर एवं श्वेताम्बर ) आगमों की नामावली के सन्दर्भ में एकमत नहीं हैं। जहाँ दिगम्बर परम्परा षड्खंडागम, कषाय.प्राभृति एवं आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य को आगम के रूप में मान्यता देती है, वहीं श्वेताम्बर परम्परा देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ( ४५३-४५६ ई० ) की अध्यक्षता में सम्पन्न वल्लभो वाचना में स्खलित एवं विलुप्त होते हुए परम्परागत ज्ञान को आधार बनाकर लिखे गये अंग, उपांग साहित्य को आगम की मान्यता देतो है । ये अंग, उपांग अर्धमागधी प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं । यहाँ पर हम इन्हीं आगमों को आगम के रूप में चर्चा करेंगे। जैन आगम ग्रन्थों में स्थानांग ( ठाणं ) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अंग साहित्य में यह तृतीय स्थान पर आता है। मूल रूप से लगभग ३०० ई० पू० में सृजित एवं ५ वीं शती ई० में अपने वर्तमान रूप में संकलित इस अंग के दसवें अध्याय में निहित १००वीं गाथा गणितज्ञों को दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस गाथा से हमें गणित के अन्तर्गत अध्ययन के विषयों की जानकारी मिलती है। परोक्ष रूप से यह माना जा सकता है कि ये विषय आगम में भी उपलब्ध होंगे, क्योंकि तीर्थंकर महावीर को संख्याज्ञान का विशेषज्ञ माना गया है एवं आगम ग्रन्थ उनके परंपरागत ज्ञान के संकलन मात्र हैं। स्थानांगसूत्र में उपलब्ध यह गाथा स्थानांग के विविध मुद्रित संस्करणों में निम्न प्रकार पाई जाती है। दस विधे संखाणे पण्णत्ते तं जहा परिकम्मं ववहारो रज्जु रासी कलासवण्णे य । जावंतावति वग्गो घणो य (त) तह वग्गवग्गो वि (कप्पो प० त-१)॥ उपर्युक्त रूप के अतिरिक्त कई गणित इतिहासज्ञों ने इसे निम्न रूप में उद्धृत किया है। परिकम्मं ववहारो रज्जु रासी कलासवन्ने ( कलासवण्णे ) या जावंतावति वग्गो घनो ततह वग्ग वग्गो विकप्पो त ।-(२) * व्याख्याता (गणित) शासकीय महाविद्यालय, थ्यावरा ( राजगढ़ ) म० प्र० ४६५६७४ । *रीडर, गणित विभाग, उच्चशिक्षा संस्थान, मेरठ, वि०वि० मेरठ (उ० प्र०) १. गणितसारसंग्रह-मंगलाचरण १/१, पृ० १ । २. ठाणं पृ० ९२६ १०.१००। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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