Book Title: Jain Agamo me Nihit Ganitiya Adhyayan ke Vishay
Author(s): Anupam Jain, Sureshchandra Agarwal
Publisher: USA Federation of JAINA

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Page 8
________________ अनुपम जैन एवं सुरेशचन्द्र अग्रवाल रासी ( सं० राशि): इस शब्द की व्याख्या में अभयदेव एवं दत्त में गम्भीर मतभेद है। अभयदेव ने रासी का अर्थ अन्नों की ढेरी किया है जबकि दत्त ने उनकी व्याख्या को पूर्णतः निरस्त करते हुए लिखा 'The term rāsi appears in later Hindu works, except this last mentioned one (G. S. S.) and means measurement of mounds of grains. But I do not think that it has been used in the same sense in the cononical works for measurement of heaps of grain has never been given any prominence in later mathematical works and indeed it does not deserves any prominance. अर्थात् राशि शब्द गणितसार संग्रह के बाद के सभी ग्रन्थों में अन्नों की ढेरी के मापन के सन्दर्भ में आया है किन्तु मैं नहीं समझता कि यह प्राचीन सिद्धान्त-ग्रन्थों में भी इसी सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ होगा। अन्नों की ढेरी के मापन को बाद के ग्रन्थों में भी कोई महत्त्व नहीं दिया गया और न यह दिया जाने योग्य है। उन्होंने आगे लिखा है कि राशि का अर्थ अन्नों की ढेरी संकुचित है एवं यह शब्द व्यापक रूप से ज्यामिति की ओर इंगित करता है। परवर्ती हिन्दू गणित ग्रन्थों में यह प्रकरण खात व्यवहार के अन्तर्गत आया है एवं राशि इसका एक छोटा भाग है। प्रो० लक्ष्मीचन्द जैन ने एक स्थान पर रासी का अर्थ समुच्चय/अन्नों की ढेरी लिखा है। हमारे विचार में सूरि एवं दत्त दोनों के अर्थ समीचीन नहीं हैं। समुच्चय अर्थ अनेक कारणों से ज्यादा उपयुक्त लगता है। राशि शब्द की व्याख्या करते हए जैन ने लिखा है कि इस पारिभाषिक शब्द पर गणित इतिहासज्ञों ने ध्यान नहीं दिया। राशि के अभिवत्त-सेट (Set) जैसे ही हैं।४ राशि के पर्यायवाची शब्द समूह, ओघ, पुंज, वृन्द, सम्पात, समुदाय, पिण्ड, अवशेष तथा सामान्य हैं । जैन कर्म एवं दर्शन सम्बन्धी साहित्य में वोरसेन (८२८ ई० लगभग) तक इसका उपयोग अत्यधिक होने लगा था । इसका उपयोग परवर्ती हिन्दू गणित ग्रन्थों में त्रैराशिक पंचराशि के रूप में भी हुआ है । अभिधान राजेन्द्रकोष में राशि का प्रयोग समूह, ओघ, पुंज, सामान्य वस्तुओं का संग्रह, शालि, धान्यराशि, जीव, अजीव राशि, संख्यान राशि के रूप में बतलाया गया है। तिलोयपण्णत्ति (४७३-६०९) ई० में सृष्टि विज्ञान के सन्दर्भ में प्रयुक्त समुच्चयों हेतु राशि का अनेकशः उपयोग हुआ है। किसी भी राशि के अवयव का उसी राशि से सदस्यता विषयक सम्बन्ध होता है। राशि की संरचना करने वाले ६ द्रव्य निम्न हैं : १. जीव, २. पुद्गल परमाणु, ३. धर्म ४. अधर्म ५. आकाश ६. कालाणु १. धान्य बिगेरनो ढगलो तेना विषय वालं संख्यान ते राशि पटिमां राशिव्यवहार नाम थी प्रसिद्ध छ । २. देखें सं०-३, पृ० १२० । ३. देखें सं०-१, पृ० ३५ । ४. देखें सं०-८, पृ० ४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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