Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan Author(s): Jayantsensuri Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust View full book textPage 7
________________ नहीं दे सका फिर भी जो कुछ भी लिखा है उससे अनुसंधानकर्ताओं को बहुत कुछ दिशा निर्देश मिल सकता है । धर्म और दर्शनेतर विषयों पर लेखन के लिए श्रेष्ठ उपाय यही है कि प्रत्येक आगम का सांस्कृतिक अध्ययन / विवेचन / अनुशीलन प्रस्तुत किया जावे। यदि विषयवार विवेचन प्रस्तुत करना है तो एक एक विषय पर अलग-अलग अनुशीलन होना अपेक्षित है। यदि यह अनुशीलन तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया जाए तो और भी उत्तम होगा । अपनी व्यस्तता के कारण मैं चाहकर भी यह कार्य नहीं कर पाऊंगा । कारण यह है कि यह कार्य समय साध्य भी है और श्रम साध्य भी है। फिर दूरस्थ क्षेत्रों में विहाररत रहने से वहाँ संदर्भ ग्रंथों की समस्या भी रहती है। इसलिए विद्वानों और अनुसंधानकर्ताओं से यही अपेक्षा करता हूँ कि वे इस ओर अपना ध्यान देकर इस महत्वपूर्ण कार्य को सम्पादित करने में अपना मूल्यवान योगदान देंगे। प्रस्तुत ग्रंथ के लेखन में जिन विद्वानों के ग्रंथों का उपयोग हुआ उनके प्रति आभार । लेखन में समय समय पर जिनका सहयोग मिला उनको धन्यवाद । भूमिका लेखन के लिए डॉ. सागरमल जैन, पुरोवचनिका लेखन के लिए डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी एवं प्राक्कथन लेखन के लिए. डॉ. . तेजसिंह गौड़ भी धन्यवाद के पात्र हैं। इसी प्रकार का सहयोग आवश्यकता पड़ने पर भविष्य में भी अपेक्षित है । इस ग्रंथ के मुद्रण में जिन श्रद्धालु गुरु भक्तों ने स्वअर्जित धनराशि का सदुपयोग किया है, उन्हें भी धन्यवाद । वे इसी प्रकार धर्मध्यान के प्रति सतर्क बने रहें, यही अपेक्षा है । विज्ञ पाठकों से आग्रह है कि ग्रंथ में रही कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करवायें, ताकि भविष्य में उनका परिहार किया जा सके । महावीर जयंती, २०५१ दि. २३.४.१९९४ vi) आचार्य जयंतसेन सूरिPage Navigation
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