Book Title: Jahangir no Vidharmi Pavitra Purusho Pratyeno Adar Author(s): Chotubhai R Nayak Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 4
________________ डा० छोटभाई र. नायक शीखोनी अनुश्रतिमां प्रा बनाव नीचे प्रमाणे नोधवामा अावेलो छः जहांगीरे गुरु ने तेनी सामे बोलाव्या अने कह्य के 'तु एक महान संत छे, एक महान् उपदेशक छ अने पवित्र पुरुष छ, त गरीब अने तवंगर ने समान गणे छे. ते थी मारा दश्मन खसरोने तें पैसा प्राप्या ए योग्य न कयु' अर्जू ने जवाब प्राप्यो के हैं हिन्दु के मुसलमान, तवंगर के गरीब, दोस्त के दृश्मन एम तमामने मोहवत के नफरतनी (पक्षपात) दृष्टि थी जोतो न थी, अने आज कारण थी तारा पुत्र ने में थोड़ा पैसा तेनी मुसाफरीनां खर्च माटे आप्या अने नहि के ते तारो विरोधी हतो ते थी, जो में तेने तेनी जलती परिस्थितिमां सहाय न करी होत अने तारा पिता शहेन शाह अकबरनी मारा तरफ नी माया ध्यान में राखी होत तो आम जनता ए मारा हृदयनी कठोरता माटे मने धिकार्यों होत, अने तेयो कहेत के हुं डरतो हतो, दुनियांना गुरु, गुरुनानक ना अनुयायी ने माटे ए विना अरण घटती बनत" ते पछी जहांगीरे तेने बे लाख रुपियानो दंड कर्यो अने हिंदु अने मुसलमान धर्मो विरुद्धनां भजनो तेनां ग्रथमाथी काढी मांखवानो तेने हुक्म कर्यो। त्यारे अर्जुन गुरु बोल्या के 'जे कई धन मारी पासे छे ते रंक निराधार अने अजाण्या लोकोने माटे छे, जो तारे धन जोइतु होय तोतु मारी पासे जे छ ते लई ले; परंतु जोतु दंड तरीके ते मांगतो होय तो हुँ एक कोडी पण तने पापीश नहि; कारण के दंड दृष्ट दून्यवी लोको उपर लादवामां आवे छे अने नहि के धर्माचार्यों अने सन्यासीनो उपर । ग्रंथसाहेबमांना भजनो काडी नाखवा बाबत मां जे कई ते का ते अंगे जणाववानु के हुं सहेज पण ते मांथी काढी नांखीश नहि, के बदलीस नहि, हुं शाश्वत ईश्वर अने परमात्मा नो भक्त छु', तेना सिवाय कोई शासक न थी, अने तेणे जे कई गुरु नानक थी मोडी गुरु रामदास सुधीना गुरुप्रोना अने ते पछी मारा हृदय मां प्रगट कर्य छे ते पवित्र ग्रन्थ साहेब मां नौंववामां आवेलू छे, जे भजनो तेमाँ स्थान लीधे लुछे ते कोई हिंदु अवतार के कोई मुसलमान पैगम्बर ने माटे अपमान युक्त न थी, पेगम्बरो धर्माचार्यो भने अवतारो असीम साश्वत् ईश्वर तरफ थी कार्यो करे छे एम तेमा श्रद्धापूर्वक लखेलुछे, मारु ध्येय सत्नो प्रचार अने जूठ नो विनाश करवानु छे अने ए कार्यनी सिद्धि मा पा क्षणभंगूर देहनो लय थाय तो हुँ मारु अहो भाग्यलेखीश. कंई जवाब आप्या बिना मुलाकातनो ओरडो छोडी जहांगीर चाल्यो गयो, काजी ते पछी गुरुने जगाव्यु के 'तमारे दंड भरवो जोइए अने नहि तो केद भोगववो जोइए; अजून दंड भरवा माटे फांलो उधराववानी मनाई तेमना अनुयायीनो तुरतज करी, काजीपने अने पंडितो तेमना ग्रथ मांथी व भजनो काढी नांखे तो तेमने मुक्ति आपवानी दरखास्त पेशकरी, त्यारे अर्जुन जबाब प्राप्यो के 'मनुष्यो ने आ अने बीजी दुनियां मा सुख अने नहि के आपत्ति आपबा ग्रंथ साहेबनी रचना करवामां प्रावेली छे, तेने नये सरथी लखुव अने तमो मांगों छो ते प्रमाणे तेमाथी काढी नाखव' अने तेनां फेरफार करवो असंभवितछे, ते पछी शत्रोए जे त्रास तेमना उपर गुजार्यों ते सर्व गुरुए शांत चित्त अने खामोशी पूर्वक सहनकों अने न तो निसासो नांख्यो अने न तो दुःखनो अवाज काढयो, बदले सु वचन उच्चा रवा तेमने वीजी तक प्रापवामां प्रोयी त्यारे निडरपणे तेणे जवाब प्राप्यो, 'मुर्खायो! हतमारा पावर्तन थी कदी डरवानो 1. Gokul Chand Narang-Transformation of Sikhism, pp. 31-41. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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