Book Title: Jahangir no Vidharmi Pavitra Purusho Pratyeno Adar
Author(s): Chotubhai R Nayak
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 8
________________ २८ डा० छोटूभाई र. नायक . सोमवार' ने दिवसे फरीथी गोंसाई जदरुप ने मलवा दिल अाकर्षायु. निःसंकोच हुँ तेनी कुटीर तरफ उतावलो उतावलो गयो. अपने तेने मलयो. तेनी साथे उच्च कक्षानी घणी बात थई, अल्लाह ताला तेने ताजुबो उत्पन्न करे एवी शक्ति अली छे. तेनी समज उमदा प्रकारनी, तेनो स्वभाव उन्नत कोटिनो अपने तेनी परख शक्ति प्रचंड छे. ते साथे तेना मा इलाही ज्ञान संग्रहित छे. दुनियां नी माया मां थी तेणे तेनु दिल मुक्त करी दीधेलु छे. संसार तथा तेमां जे कई छे ते तरफ तेतो पूठ फेर वेली छे. ते एकांत खूणांमां निःस्पृह जीवन गाले छे. सृष्टि नी चीजो मा थी अ|गज पुराणु टाट तेनी पासे छे. जेवड़े ते तेनु गुप्त अंग ढांके छे. पाणी पीवा माटे तेनी पासे माटींनु वासण छ. शियाला उनाला अने चोमासा मां ते उघाडो नग्न सिरे अने नग्न पणे रहे छे, अति मुश्केिली थी धावतु बालक दाखल थई शके एवी (सांकड़ी) गुफा मां ते रहे छे. बुधवार ने दिवसे फरीथी हुँ गोसांई ने मलवा गयो. अने पछी तेवाथी छूटो पडयो. निःसंकोच तेनी संगतमा रही ने तेनाथी थयेली जुदाई मारा निष्ठावान दिल उपर बोज समान रही. जहांगीर हि० स० १०२७ ( ई० स० १६१८ ) माँ अमदाबाद मां हतो ते दरमियान पण तेदे एक सन्यासी कांकरियानी पाल ऊपर मली गयो हतो. तेणे नोंध्यु छ के "कांकरिया तलाब नी पाल उपर एक सन्यासी तूटी फूटी कुटिर मां रहेतो हतो. ते हिंदु हतो. मारु दिल संतोनी संगत तरफ आकर्षातु रहे तु होवाथी कोई पण प्रकारना संकोच बिना शाही तंबु मांयी नीकलीने फकीरना जेवा तेना बसबाट तरफ हैं गयो. लांवो समय तेनी पासे हैं बेसी रह्यो. तपास करतां जाणवानु मलयु के ते सन्यासी ज्ञान, सज्जनता अने त्याग वृति धरावे छे अन परमात्मा अंगेना मर्म अने अध्यात्म ना भेद थी वाकेफ छे. बाहय रीते ते फकीरी अने दरवेशों जेवो रहे छे अने प्रांतरिक रीते तेणे संसारी माया नो त्याग करे लो छे". आगल उपर जहांगीर तेने विशे लख्यूछे के 'त्यां अन्य अनेक संतो हता; परंतु ते सन्यासी थी चढे एवो ते मंडली मां कोई बीजो नजरे पडयो नहिं". जैन मुनिमोना प्रत्ये पण जहांगीर आदरनी लागणी धरावतो हतो. जैनाचार्यों मां हीर विजय सूरि, विजयसेन सूरि अने विजय देवसूरि जैन समाज ना गोरव-रत्नो छे. जहांगीर ना समय मां एक एवो बनाव बन्यो के हीर विजय सूरि ना पट्ट धर विजयसेन सूरि ए विजयदेव सूरि ने पोताना पट्ट धर बनाव्या हता. तेना केटलाक शिष्यो ए ते नीमणूक सामे वांधो उठाव्यो अने विरोध कर्यो, ए समये जहांगीर ने एवा ए विजय देवसूरि ने मलवानु मनथयु अने तेथी तेणे तेमने पोताना दरबार मां पधारवानु आमंत्रण एक फरमान द्वारा पाठव्यु। जहांगीर मालवा मां मांडू ( मांडवगढ़ ) मांहतो अने सूरि खंभात मां चोमासु पालता हता. फरमान मलतां तेमणे मांडू तरफ विहार कर्यो अनेत्यां पहोंची शहेनशाह १. तुजुके जहांगीरो पृ० २८२-८३ २. अकबर आ मुनि ने रमेशा पोतानी पासे राखतो रतो अनेदर विवारे सवारे एमना मुछे थी बोलाता सूर्य सर स्त्रनाम मालानु एकाग्रता पूर्वक श्रवण करतो रतो. (पद्मश्री मुनिजिन विजयजी-जैन इतिहासनी झलक पृ० १८१) ३. पद्मश्री जिनविजय जी-जैन इतिहास नी झलक-१८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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