Book Title: Itihas lekhan ki Bharatiya Avadharna
Author(s): Asim Mishra
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 14
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास५५. महेश्वरसूरि (वि.सं. १५९९ में स्वर्गस्थ) उदकानल चौरेभ्यः मूषकेभ्यस्तथैव च। रक्षणीया प्रयत्नेन यत कष्टेन लिख्यते।।१।। ५६. अभयदेवसूरि (वि.सं. १५९५ में स्वर्गस्थ) संवत् १३७८ वर्ष भाद्रपद सुदि ४ श्रावकमोल्हासुतेन ५७. आमदेवसूरि (वि.सं. १६३४ में स्वर्गस्थ) भार्याउदयसिरिसमन्वितेन पुत्रसोमा-लाखा-खेतासहितेन श्रावकऊदाकेन श्रीकल्पपुस्तिकां गृहीत्वा श्री अभयदेवसूरीणां ५८. शांतिसूरि (वि.सं. १६६१ में स्वर्गस्थ) समर्पिता वाचिता च। ५९. यशोदेवसूरि (वि.सं. १६९२ में स्वर्गस्थ) इस प्रशस्ति में रचनाकार ने यद्यपि अपनी गुरु-परंपरा, रचनाकाल आदि का कोई निर्देश नहीं किया है, फिर भी ६०. नन्नसूरि (वि.सं. १७१८ में स्वर्गस्थ) पल्लीवालगच्छ से संबद्ध सबसे प्राचीन साक्ष्य होने इसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। ६१. उद्योतनसूरि (वि.सं. १७३७ में स्वर्गस्थ) इस प्रशस्ति के अंत में वि.सं. १३७८ में किन्हीं अभयदेवसूरि इस पट्टावली में ४१ वें पट्टधर महेश्वरसूरि के वि.सं. ११४५ को पुस्तक समर्पण की बात कही गई है।ये अभयदेवसूरि कौन में निधन होने की बात कही गई है। प्रथम पट्टावली में भी थे। महेश्वरसरि से उनका क्या संबंध था, इस बारे में उक्त प्रशस्ति महेश्वरसूरि का नाम मिलता है और वि.सं. ११५० में उनके से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। पल्लीवालगच्छ की द्वितीय निधन होने की बात कही गई है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि पदावली में हम देख चके हैं कि महेश्वरसरि के पट्रधर के रूप महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रभावक आचार्य थे। इसी कारण दोनों में अभयदेवसरि का नाम आता है। इस आधार पर इस प्रशस्ति में पट्टावलियों में न केवल इनका नाम मिलता है, बल्कि इन्हें में उल्लिखित अभयदेवसूरि महेश्वरसूरि के शिष्य सिद्ध होते हैं। में समसामयिक भी बतलाया गया है। पल्लीवालगच्छ से संबद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य है पल्लीवालगच्छ का उल्लेख करने वाला महत्वपूर्ण साक्ष्य वि.सं. १५४४/ई. स. १४८८ में नन्नसरि द्वारा रचित है महेश्वरसूरि द्वारा रचित कालकाचार्यकथा की वि.सं. १३६५ में सीमंधरजिनस्तवन । यह ३५ गाथाओं में रचित एक लघुकृति लिखी गई प्रति की दाताप्रशस्ति', जो इस प्रकार है- है। नन्नसरि के गरु कौन थे, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई इति श्रीपल्लीवालगच्छे श्री महेश्वरसरिभिर्विरचिता सूचना प्राप्त नहीं होती। कालिकाचार्यकथासमाप्त।। वि.सं.१५७३/ई.स. १५१९ में प्राकृत भाषा में ८८ गाथाओं श्रीमालवंशोऽस्ति विशालकीर्तिः श्रीशांतिसूरिप्रतिबोधित डीडाकाख्यः। में रची गई विचारसारप्रकरण की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि श्रीविक्रमाद्वेदनभर्महर्षिवत्सरैः(?) श्री आदिचैत्यकारापित नवहरे च।।१।। . इसके रचनाकार महेश्वरसरि द्वितीय भी पल्लीवालगच्छ के थे। उपासकदशाङ्ग और आचारांग की वि.सं. १५९१/ई. १५३५ में लिखी गई प्रति की पुष्पिकाओं में भी पल्लीवालगच्छ के नायक के रूप में महेश्वरसरि का नाम मिलता है।" स्वश्रेयसे कारितकल्पपुस्तिका ...पुण्योदयरत्नभूमिः। वि.सं.की १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण में पल्लीवालगच्छ श्रीपल्लिगच्छे स्वगुणौकधाम्ना वाचिता श्रीमहेश्वरसूरिभिः।।१०।। में अजितदेवसूरि नामक एक प्रसिद्ध रचनाकार हो चुके हैं। नृपविक्रमकालातीत सं. १३६५ वर्षेभाद्रपदवदौ नवम्यां इनके द्वारा रचित कई कृतियाँ मिलती है, जो इस प्रकार हैं-- तिथौ सीमेदपाटमंडले वऊणाग्रामे कल्पपस्तिका लिखिता।।छ।। १. कल्पसिद्धान्तदीपिका २. पिण्डविशुद्धिदीपिका (वि.सं. १६२७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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