Book Title: Itihas lekhan ki Bharatiya Avadharna
Author(s): Asim Mishra
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 19
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्ध-इतिहासके शिष्य सुमति शेखर एवं देवशेखर (शिलालेख के रचनाकार) ५२. १६७२ भंडारस्थ प्रतिमा, वही, लेखांक ९२ शांतिनाथ जिनालय, नाकोडा रंगमंडप, वही, लेखांक ९५ पार्श्वनाथ जिनालय नाकोड़ा १२. १६८१ माघ सुदि ४ श्री ...शेखरसूरि शांतिनाथ की शनिवार प्रतिमा का लेख चैत्र वदि ५ । यशोदेवसूरि के समय शिलालेख मंगलवार हरशेखर के शिष्य नाकोड़ा कनकशेखर के शिष्य देवशेखर एवं सुमतिशेखर (शिलालेख के रचनाकार) आषाढ वदि६ - शिलालेख सोमवार फाल्गुन सुदि १० - वासुपूज्य की बुधवार प्रतिमा का लेख ५३. १६८१ वही, लेखांक ९७ नाभिमंडप, पार्श्वनाथ जिनालय, नाकोड़ातीर्थ पंचतीर्थी मंदिर, नाकोडा ५४. १६८१ वही,लेखांक ९६ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के आचार्यों का जो पट्टक्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार है-- शांतिसूरि (कोई लेख उपलब्ध नहीं) ? महेश्वरसूरि (प्रथम) (वि.सं. १३४५-१३६१) यशोदेवसूरि (वि.सं.१६६७-१६८१) अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित महेश्वरसूरि 'प्रथम' अभयदेवसूरि (वि.सं. १३८३-१४०९) (वि.सं. १३४५-१३६१) और कालकाचार्य कथा (वि.सं. १३६५/ई.स. १३०९ की उपलब्ध प्रति) के रचनाकार महेश्वरसूरि आमसूरि (वि.सं. १४३५) को समसामयिकता, नामसाम्य आदि को दृष्टिगत रखते हुए एक शांतिसूरि (वि.सं. १४५३-१४५८) ही व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक यही बात अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात नत्रसूरि (वि.सं. १५२८-१५३०) और सीमंधर यशोदेवसूरि (वि.सं. १४७६-१५१३) जिनस्तवन (रचनाकाल वि.सं. १५४४/ई. सन् १४८८) के कर्ता नन्नसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार वि.सं. नन्नसूरि (वि.सं. १५२८-१५३०) १५७३/ई.स. १५२४ में विचारसारप्रकरण के रचनाकार महेश्वरसूरि और वि.सं. १५७५-१५९३ के मध्य विभिन्न जिनप्रतिमाओं के उद्योतनसूरि (वि.सं. १५३३-१५६६) प्रतिष्ठापक महेश्वरसरि द्वितीय भी एक ही व्यक्ति मालम पडते हैं। जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं, अजितदेवसरि ने भी अपनी महेश्वरसूरि (द्वितीय) (वि.सं. १५७५-१५९३) कृतियों में स्वयं को महेश्वरसूरि का शिष्य बताया है, जिन्हें महेश्वरसूरि द्वितीय से अभिन्न माना जा सकता है। अभयदेवसूरि (कोई लेख उपलब्ध नहीं) उक्त साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पल्लीवालगच्छीय मुनिजनों की गुरु-परंपरा की जो तालिका आमसूरि (वि.सं. १६२४) बनती है, वह इस प्रकार है-- andramdrintinidiaomindaiadridhiariadmiridra-[ ६९ dirstindiandiarioritrinsidroid-dramdaridrosdadi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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