Book Title: Itihas lekhan ki Bharatiya Avadharna Author(s): Asim Mishra Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 1
________________ Amo इतिहास - लेखन की भारतीय अवधारणा Jain Education International तिहास-लेखन पर कुछ लिखने से पूर्व इस विषय पर विचार करना आवश्यक है कि इतिहास किसे कहा जाए । प्रकृत विषय पर आने से पूर्व इतिहास के संबंध में भारतीय और पाश्चात्य अवधारणाओं से परिचित होना परमावश्यक इतिहास के व्युत्पत्तिपरक शब्दार्थ से स्पष्ट होता है कि इस शब्द के निहितार्थ में भूतकाल के स्मरणीय महापुरुषों और प्रसिद्ध घटनाओं का वर्णन सन्निहित है। इतिहास शब्द का प्राचीन प्रयोग अथर्ववेद और ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलता है। अथर्ववेद में इसकी चर्चा ऋक्, यजुस् और साम तथा गाथा और नाराशंसी के साथ हुई है। ऐतिहासिक रचनाओं को ब्राह्मणों और उपनिषदों में इतिहासवेद कहा गया है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र (ई. पू. तृतीय शती) में वेदों की गणना करते हुए लिखा है कि ऋक्, साम और यजुस् त्रिवेद है, इनके साथ अथर्व और इतिहासवेद की गणना वेदों के अंतर्गत की जाती है। कौटिल्य ने इतिहास को पंचम वेद का महत्त्व प्रदान कर उसे ज्ञान के क्षेत्र में काफी ऊँचा स्थान दिया है । वृहद्देवता में पूरे एक सूक्त को इतिहास सूक्त कहा गया है। कौटिल्य ने इतिहास की परिभाषा देते हुए अर्थशास्त्र में लिखा है कि पुराण, इतिवृत्त, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र इतिहास है।' इस प्रकार प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार इतिहास शब्द बहुत व्यापक और विस्तृत था। इसके परिक्षेत्र में अनेक विषय समाविष्ट थे । अर्थशास्त्र में प्रयुक्त 'पुराण' शब्द का अभिप्राय उन आख्यायिकाओं से है जो प्राचीन (पुरा) काल से पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होती आई हैं । इतिवृत्त का शब्दार्थ है 'भूत में घटित घटना'। यह आधुनिक इतिहास शब्दार्थ के अधिक निकट है । इतिवृत्त में भूतकाल की घटनाओं और स्मरणीय व्यक्तियों का ब्यौरा संग्रहीत किया जाता है। उदाहरण या दृष्दान्त साहित्य के अंतर्गत वे कथाएँ कहानियां आती हैं जिनमें प्राचीनकाल के यथार्थ या कल्पित व्यक्तियों के दृष्टान्त देकर किसी नैतिक सिद्धांत या राजनीतिक नियम को अनुमोदित समर्थित किया जाता है। इसीलिए जैन - कथा आख्यायिका साहित्य में ऐसे दृष्टान्त पर्याप्त मिलते हैं । इस वेदों में शुनः शेप और पुरुरवा आदि के आख्यान मिलते हैं, जो परवर्ती ऐतिहासिक नाटकों और प्रबंधों के खोत रहे हैं। बाद में इतिहास और पुराण परस्पर घुल-मिल गए। पुराण शब्द का प्रयोग अथर्ववेद में प्राचीन जनश्रुति (Ancient-Lore) के अर्थ में हुआ है। शतपथब्राह्मण में इतिहास - पुराण प्रायः युगपत् व्यवहृत मिलते हैं। इनका इतिहास पुराण में क्रमशः विलय हो गया है । इतिहास और पुराण का वर्णन क्षेत्र एक ही था और विषय-वस्तु भी प्राय: समान ही थी । पुराणों में इतिहास, आख्यान और गाथा सम्मिलित थे। इनसे वंश - साहित्य या वंशानुचरित का विकास हुआ और वंशवर्णन पुराणों का प्रमुख लक्षण माना जाने लगा। हरिवंश और रघुवंश इसके प्रमाण हैं। आख्यायिका भी एक प्रकार की इतिहास रचना थी । कालान्तर में अर्थशास्त्र और धर्मशास्त्र ने अपना स्वतंत्र विकास कर लिया। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि प्राचीन भारतीय वाङ्मय में इतिहास की स्पष्ट अवधारणा मिलती है और उसके आधार पर इतिहास - रचना होती थी । किन्तु कुछ पाश्चात्य विद्वानों की देखा-देखी भारतीय विद्वानों के एक वर्ग में यह धारणा प्रचलित थी कि प्राचीन भारत में इतिहास और इतिहासकार नहीं थे। जिस देश में इतिहास शब्द का इतना प्राचीन प्रयोग मिलता है और जिसे विद्या के क्षेत्र में इतना उच्च स्थान दिया गया है, उससे भारतीय 43 - For Private डॉ. असीम कुमार मिश्र... पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी उदाहरण - साहित्य में प्रसंगतः किसी ऐतिहासिक पात्र या घटना का वर्णन भी मिल जाता है, जिससे इतिहास-लेखन में सहायता मिलती है। आख्यान या आख्यायिका का अर्थ ऐतिहासिक कथा है। शतपथब्राह्मण में आख्यान और इतिहास का अन्तर बताया गया है। पुराणों में सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय), वंश (ऋषियों और राजाओं की वंशावलियाँ), मन्वन्तर तथा वंशानुचरित ये मुख्य घटक थे । स्मरणीय है कि वंशावली केवल राजाओं की ही नहीं बल्कि ऋषियों की भी दी जाती थी और राजाओं से पूर्व उसे स्थान दिया जाता था । इसीलिए जैनपट्टावलियाँ जिनमें जैन सूरियों, भट्टारकों की वंशावली है, जैन इतिहास-लेखन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । Personal Use Only - www.jainelibrary.orgPage Navigation
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